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ध्येय का चुनाव
एक बीमार व्यक्ति से पूछा जाए-तुम चिकित्सा करा रहे हो। चिकित्सा का ध्येय क्या है? उत्तर होगा-स्वास्थ्य-लाभ । स्वस्थ रहने के लिए चिकित्सा कराई जाती है और स्वस्थ बनाने के लिए डॉक्टर चिकित्सा करता है।
__मनुष्य की चाह है स्वास्थ्य। किन्तु बीमारियां कितनी हैं? एक नहीं, अनेक हैं। चिकित्सा के प्रकार भी अनेक हैं। कोई भी चिकित्सा की ऐसी पद्धति नहीं है, जिससे सब रोगों की चिकित्सा एक समान विधि से की जा सके। अनेक रोग, अनेक चिकित्सा के विकल्प और अनेक औषधियां। ऐसी कोई एक औषधि नहीं है, जो सब रोगों के लिए काम की हो इसीलिए चिकित्सा की पद्धति अनेकात्मक है। अनेकात्मक है ध्यान की पद्धति
ध्यान की पद्धति भी अनेकात्मक है। पूछा जाए--ध्यान का उद्देश्य क्या है? सीधा उत्तर होगा-आत्मा का स्वास्थ्य। एक है शरीर का स्वास्थ्य और दूसरा है आत्मा का स्वास्थ्य । हमारा ध्येय है आत्मा का स्वास्थ्य । आत्मा स्वस्थ रहे, नीरोग रहे, जो रोग हैं वे मिट जाएं। एक शब्द में यह उत्तर संभव है किन्तु हमें विभक्त करना होगा, एक शब्द से काम नहीं चलेगा। जितने रोग के प्रकार हैं, उतने ही प्रकार औषधि के होंगे। आसन का एक उपयोग है ध्यान में सहायता करना तो आसन का दूसरा उपयोग है शरीर को स्वस्थ बनाए रखना। आसन का एक पहलू है चिकित्सात्मक और दूसरा पहलू है ध्यानात्मक। जो लोग योगा के द्वारा, आसन के द्वारा चिकित्सा करते हैं, उन्होंने आसनों का अलग-अलग वर्गीकरण किया है। जिसे सुगर की बीमारी है, उसे इतने आसनों का कोर्स देना है। जिसे उच्च रक्तचाप की बीमारी है, उसे इतना कोर्स देना है। प्रत्येक बीमारी के लिए आसनों का अलग-अलग वर्गीकरण है। इसी प्रकार ध्यान में भी हमें वर्गीकरण करना होगा। बाधक समस्याएं
__ शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक-ये समस्याएं आत्मा के स्वास्थ्य में बाधक हैं। शारीरिक समस्याएं आत्मा को भी अस्वस्थ बना देती हैं। एक व्यक्ति ध्यान
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