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ध्यान किसका करें? गन्धानुभूति होने लग जाती है। जब गन्धानुभूति होने लग जाती है तब उसका ध्यान में विश्वास तीव्र होने लग जाता है। व्यक्ति समझता है कि मैंने एक अनुभव पा लिया। जिसे थोड़ा भी अनुभव होता है, वह ध्यान के लिए समर्पित हो जाता है।
___ जिह्वा के अग्रभाग पर ध्यान करें। जैसे-जैसे ध्यान सधेगा, रस का संवेदन होने लग जाएगा। जीभ के मध्य भाग पर ध्यान करें। अभ्यास की सिद्धि के साथ-साथ स्पर्श का संवेदन होने लग जाएगा। जिला-मूल पर ध्यान करें, शब्द का अनुभव होगा। जीभ को अधर में रखकर जीभ के अग्रभाग, जीभ के मध्यभाग और जीभ के मूलभाग पर ध्यान करना एक महत्त्वपूर्ण प्रयोग है। जीभ को तीन भागों में बांट दें-अग्र, मध्य और मूल। जीभ के मूल पर ध्यान करने से स्वरयंत्र का सम्बन्ध जुड़ जाता है, शब्द का संवेदन होने लग जाता है। तालु पर ध्यान करें तो रूप का संवेदन होने लग जाता है। यह है एक विषयवती प्रवृत्ति।
नाक का अग्रभाग, तालु, जीभ का अग्रभाग, जीभ का मध्य भाग और जीभ का मूलभाग-शरीर के ये सारे अवयव हमारे आलंबन बन गए। एक विषयवती प्रवृत्ति होती है, मन एकाग्र हो जाता है। पूरे शरीर को देखना, शरीर प्रेक्षा करना, एक सामान्य प्रयोग है। उससे प्राण का संतुलन होता है किन्तु विशेष विकास करना चाहें तो शरीर के एक-एक अवयव पर विशेष ध्यान करना होगा। चैतन्य केन्द्रों का निर्धारण इसी आधार पर हुआ है। नासाग्र प्राण का केन्द्र है। जीभ भी चेतना का एक केन्द्र है। उसके तीन नहीं, अनेक विभाग किए जा सकते हैं। हम जीभ के दाएं हिस्से पर ध्यान कर सकते हैं, बाएं हिस्से पर भी ध्यान कर सकते हैं। इनके ध्यान से अलग स्थिति बन जाएगी। शरीर के कण-कण में आलम्बन हैं। यह शरीरालम्बन सबसे अच्छा आलंबन है। हम सूर्य का, चन्द्रमा का, दीप और रत्न का आलंबन लेते हैं। वह भी बड़ा उपयोगी है। किसी परमाणु या वस्तु का आलंबन भी उपयोगी है। किन्तु शरीर का आलंबन दो दृष्टियों से उपयोगी है। पहली बात यह है-एकाग्रता सधती है। दूसरी बात यह है-शरीर की उन इन्द्रियों का विकास भी साथ में हो जाता है। भेरी चन्दन की बन गई
वासुदेव कृष्ण के राज्य में एक भेरी थी। वह भेरी छह मास से बजाई जाती। स्वयं वासुदेव कृष्ण आते और उस भेरी को बजाते । कहा जाता है-उसका परिणाम यह होता कि बारह योजन के क्षेत्र में जो भी बीमारियां होतीं, अशिव-उपद्रव होता, सारे शांत हो जाते। इतना था भेरी के शब्द का प्रभाव । शब्द के प्रभाव पर विचार पहले भी बहुत हुआ था और आज भी हो रहा है। बड़ी शक्ति होती है शब्द में, मंत्र में । बड़ी उपयोगी थी भेरी। द्वारिका का एक धनाढ्य बीमार हो गया। बहुत उपचार किया, स्वस्थ नहीं हुआ। उसने किसी से पूछा--'भाई! क्या करूं?' उसने उपाय सुझाया-'वासुदेव जो भेरी
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