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ध्यान किसका करें?
ऐसा होता है। निश्चय नय परमार्थ को छूने वाला नय है। वास्तविक क्या है, वह इसे स्पष्ट करता है किन्तु उसका ध्यान करना सरल नहीं है। जो अस्पष्ट है, परोक्ष है, उस पर ध्यान टिकाना बहुत कठिन होता है। ओलंपिक खेलों में प्रशिक्षित धावक भाग लेते हैं। क्या दो वर्ष का बच्चा धावक बनेगा? उसने चलना तो पूरा सीखा ही नहीं है, धावक बनना कैसे सम्भव होगा? जब उसके पैरों में ताकत आ जाए, दौड़ने का अभ्यास करे और पूरा प्रशिक्षण ले तब वह धावक की प्रतियोगिता में भाग ले सकता है, किन्तु दो वर्ष का बच्चा धावक की प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं ले सकता। ठीक यही बात ध्यान के संदर्भ में है। जो भिन्न का अभ्यास कर लेता है, पर-आलंबन का अभ्यास कर लेता है, वह अभिन्न का ध्यान की योग्यता पा सकता है
अभिन्नमाद्यमन्यत्तु, भिन्नं तत्तावदुच्यते । _ भिन्ने तु विहिताभ्यासोऽभिन्नं ध्यायत्यनाकुल: ।।
अभिन्न है हमारी आत्मा। भिन्न है पदार्थ । भिन्न पर ध्यान का अभ्यास कर लिया तो धीरे-धीरे अभिन्न का ध्यान करने की क्षमता विकसित हो सकेगी, किन्तु भिन्न का ध्यान नहीं किया और हम सीधे अभिन्न पर जाएं तो यह संभव नहीं होगा। कोई व्यक्ति ऐसा हो सकता है, जो सीधा आत्मध्यान में चला जाए अथवा जिसके पूर्वजन्म का ऐसा संस्कार है, जो पहले ध्यान कर चुका है, वर्तमान में सीधा आत्मध्यान में चला जाए, किन्तु यह सामान्य आदमी के लिए संभव नहीं है।
निश्चय का ध्यान और व्यवहार का ध्यान, स्वरूपालंबी ध्यान और परालम्बी ध्यान-दोनों में अन्तर है। हम दोनों को एक तुला के पलड़े में नहीं रख सकते।
बच्चे ने मां से पूछा-मां! रेडियो और टेलीविजन में क्या अन्तर है? मां ने कहा-मैं और तुम्हारे पिता जब कमरे के भीतर लड़ते हैं तब रेडियो और जब लड़ते-लड़ते बाहर आ जाते हैं तब टी.वी. हो जाते हैं। परालंबन के प्रयोग
स्वालंबन है भीतर रहना। परालंबन में हमारे सामने टी.वी. आ जाती है। हमने सूरज पर ध्यान टिकाया, चन्द्रमा पर ध्यान टिकाया, यह टी.वी. है। ध्यान का एक प्रयोग है सूर्य पर ध्यान करना। भगवान महावीर सूर्याभिमुख ध्यान करते थे। उस समय के अनेक साधक सूर्य के सामने खड़े हो जाते, हाथों को ऊपर कर लेते और सूर्य पर दृष्टि टिकाकर अनिमेष प्रेक्षा-त्राटक-ध्यान करते। बहुत कठिन है ध्यान का यह प्रयोग। सबसे पहले खतरा होता है आंख को। जो विधि को नहीं जानता, उसकी आंख के लिए कठिनाई होती है और जो विधि को जान लेता है, उसके लिए कोई समस्या नहीं है। यह प्रयोग प्रकाश के आवरण, ज्ञान के आवरण को क्षीण करने का और अतीन्द्रिय
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