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तब होता है ध्यान का जन्म वस्तु सुन्दर है, बहुत अच्छी है। सुन्दर और असुन्दर होने का मानदण्ड है-हमारी इन्द्रियां। हम इन्द्रियों के आधार पर ही सारा निर्णय कर रहे हैं। इन्द्रिय जगत् से हम इतने जुड़े हुए हैं कि इन्द्रियों से परे की बात सोच ही नहीं पा रहे हैं। जब तक इन्द्रियातीत चेतना जागृत नहीं होती तब तक सुरक्षा की बात भी नहीं सोची जा सकती और मूर्छा को तोड़ने की बात भी नहीं सोची जा सकती।
सारा वातावरण इन्द्रियजन्य है। हम कान से सुनते हैं, आंख से देखते हैं, हाथ से किसी चीज को छूते हैं और उनके आधार पर हमारी अवधारणाएं बनती हैं। बाह्य जगत् के साथ सम्पर्क करने का माध्यम है इन्द्रियां। उनके आधार पर हमारी सारी धारणाएं बनती हैं। मन वही काम करता है। जो मसाला इन्द्रियों के द्वारा मिल जाता है, वह उसको पक्का माल बना देता है किन्तु मूल स्रोत हमारी इन्द्रियां हैं। वे पदार्थों के साथ, बाह्य जगत् के साथ सम्बन्ध स्थापित करती हैं। जब तक इन्द्रियां और मन से परे होने की बात समझ में नहीं आएगी तब तक नई दुनिया का अनुभव नहीं होगा। पदार्थ की दुनिया
इन्द्रिय और मन की दुनिया का अर्थ है पदार्थ की दुनिया। पदार्थ की दुनिया का मतलब है-मूर्छा का जीवन । जो व्यक्ति जितना पदार्थ के साथ जुड़ा रहेगा, उतनी ही मूर्छा बढ़ेगी। पदार्थ के प्रति अनासक्त होना, मूर्छा का न होना, उसी स्थिति में संभव है, जब हम इन्द्रियों और मन से परे जो जगत् है उसका अनुभव कर सकें। उसे चाहे अध्यात्म कहें, ध्यान कहें अथवा धर्म कहें। आखिर ये एक ही परिवार के सदस्य हैं। उनकी परिभाषाएं अलग-अलग हैं। जो धर्म है, वह ध्यान है और जो ध्यान है, वह अध्यात्म है। परिभाषा में ये सब निकट आ जाते हैं, एक ही परिवार के हो जाते हैं। कोई चाचा है तो कोई भतीजा हो सकता है, कोई बाप है तो कोई बेटा हो सकता है, किन्तु आखिर एक ही परिवार से जुड़े हुए हैं।
सुरक्षा कहां?
दो जगत् हमारे सामने हैं-अध्यात्म का जगत् और इन्द्रियों का जगत् । इन शब्दों में भी कहा जा सकता है-एक है अतीन्द्रिय चेतना का जगत् और एक है इन्द्रिय चेतना का जगत् । इन्द्रिय चेतना के जगत् में सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं है। हम यह मान लें-व्यक्ति को किसी हत्यारे ने नहीं मारा किन्तु व्यक्ति स्वयं अपने आपको मारता है। अधिक क्रोध किया और मृत्यु हो गई। अधिक गुस्सा किया और हार्ट अटैक हो गया। अधिक खा लिया अथवा इतना खा लिया और उससे ऐसा बीमार पड़ गया कि मृत्यु हो गई। अधिक लोभ किया, लोभ का इतना तेज आवेश आ गया, युवावस्था में ही हृदय दुर्बल हो गया। व्यक्ति की असमय में मृत्यु हो गई। कौनसी सुरक्षा काम देगी? कोई सुरक्षा
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