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तब होता है ध्यान का जन्म
की लकीर जल्दी मिट जाती है। बालू में लकीर खींची, थोड़ी हवा चली, तत्काल मिट जाएगी। पानी में लकीर खींची, वह तत्काल मिट जाएगी। एक पानी की लकीर जैसा आवेग होता है। आवेग पत्थर की लकीर जैसा न बने, वह शांत रहे । हम ध्यान की प्रक्रिया के द्वारा क्रोध, अहंकार, माया लोभ, भय, घृणा, वासना - इन सबको शांत करते चले जाएं, मन्द करते चले जाएं तो उनकी तीव्रता समाप्त होती चली जाएगी। एक दिन ऐसा आएगा - हम आवेश और कषाय से मुक्त वीतराग - दशा का वरण कर लेंगे । इस स्थिति की उपलब्धि ही ध्यान का लक्ष्य है।
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