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मानवीय सम्बन्ध और ध्यान
. मूल गतियां चार हैं-नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव। किसी व्यक्ति से पूछा जाए-तुम्हारी गति कौन-सी है तो उत्तर मिलेगा-मनुष्य गति । मनुष्य केवल मनुष्य है। एक मनुष्य का दूसरे मनुष्य के साथ गहरा सम्बन्ध है। मनुष्य-मनुष्य में परस्पर सम्बन्ध केवल यही है कि वह भी मनुष्य है और यह भी मनुष्य है। यह जो मूल संबंध था, उसको गौण कर दिया गया। ओसवाल, अग्रवाल, माहेश्वरी आदि-आदि जो जातियां समय-समय पर निर्धारित की गईं, वे प्रधान बन गईं। हिन्दु, मुसलमान-ये शब्द प्रधान बन गए और मनुष्य शब्द गौण बन गया।
ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाए तो एक जाति रही है-मनुष्य। जैन आगम के महान व्याख्याकार ने कहा-'एक्का मणुस्स जाई'-मनुष्य जाति एक है। इस सूक्त में भगवान महावीर के सिद्धांत की प्रतिध्वनि है।
जातियां कोई दो नहीं होतीं। हमारी दुनिया में एक ही जाति है मनुष्य की। मनुष्य मनुष्य है। दूसरी है तिर्यंच जाति। वह पशु-पक्षी की जाति है। नरक की जाति और देव की जाति-ये दो जातियां और हैं किन्तु वे हमारी दुनिया में नहीं हैं। हमारी दुनिया में केवल दो जातियां हैं-मनुष्य और तिर्यंच । हमने इन मूलभूत जातियों को भुला दिया और बाद में अस्तित्व में आई उपजातियों, प्रजातियों को इतना प्रधान बना दिया कि मूल जातियां गौण हो गई। कहा जाता है-'गुरु तो गुड़ रह गया और चेला शक्कर बन गया।' मूल जाति तो गुड़ रह गई और बाद में आने वाली जातियां शक्कर बन गईं।
परिणाम यह आया-मनुष्य मूल जाति है, इस अवधारणा को भुला दिया गया और हम उपजातियों में उलझ गये। उसमें कोरी अम्लता ही अम्लता शेष रही, मिठास समाप्त हो गई। उपजातियों में उलझ जाने के कारण मानवीय संबंधों में वह मधुरता नहीं रही, जो दो मनुष्यों के संबंधों में होनी चाहिए। मानवीय संबंध तभी सुधर सकते हैं, जब हम मूल बात पर ध्यान दें-मनुष्य मनुष्य है, यह बात समझ में आए।
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