________________
सामाजिक समता और ध्यान
१४७
जाते हैं, उन्हें उत्तेजना, उद्दीपन मिल जाता है और व्यक्ति वैसा ही ढलता चला जाता है, वैसा ही आचरण करता चला जाता है। इन संवेगों के कारण ही झगड़े होते हैं। परिवार में झगड़े, भाई-भाई में झगड़े, पति-पत्नी में झगड़े-सबका कारण है संवेग।
जर्मनी की घटना है। पति और पत्नी-दोनों आपस में बहुत लड़ते थे। एक बार लड़ाई बढ़ते-बढ़ते इतनी बढ़ गई कि सामाजिक अवरोध पैदा हो गया। पुलिस केस बन गया। पति और पत्नी दोनों न्यायालय में उपस्थित हुए। न्यायाधीश ने खूब गहराई से सोचा-इन्हें क्या दण्ड दिया जाए? न्यायाधीश ने गंभीर चिंतन के बाद निर्णय दिया-इन दोनों को चिड़ियाघर के पिंजरे में बंद कर दिया जाए। इन्हें यह देखने का मौका दिया जाए कि चिड़ियाघर के पशु-दम्पत्ति कितने स्नेह के साथ रहते हैं। इन्हें यह सोचने का मौका मिलेगा-पशु भी कितने प्रेम से रहते हैं और हम मनुष्य होकर भी किस प्रकार लडते हैं? सात दिनों में इनको बोध-पाठ मिलेगा, शिक्षा मिलेगी और ये सुधर जाएंगे। सामाजिक जीवन के अंग
आदमी को वातावरण भी बहुत प्रभावित करता है, परिस्थितियां भी बहुत प्रभावित करती हैं। वे बिगड़ने में भी प्रभावित करती हैं और सुधरने में भी प्रभावित करती हैं।
सामाजिक जीवन मूल्यों से जुड़ा हुआ है, वातावरण और परिस्थिति से जुड़ा हुआ है। यदि परिस्थितियां, मूल्य और वातावरण न हों तो सामाजिक जीवन भी नहीं हो सकता। सामाजिक जीवन के ये अनिवार्य अंग हैं। इन सबका अच्छा निर्माण करना है। अच्छी व्यवस्था उस मस्तिष्क से निकलेगी, जिसका मस्तिष्क संतुलित है। असंतुलित मस्तिष्क से कभी अच्छी व्यवस्था नहीं निकल सकती। मस्तिष्कीय संतुलन के लिए संवेगों पर नियंत्रण होना जरूरी है। जो व्यक्ति क्रोध में उबला हुआ बैठा है, अहंकार से भरा हुआ है, वह अच्छी व्यवस्था दे, यह कभी सम्भव नहीं है। लोभी आदमी अच्छी व्यवस्था दे, यह कभी संभव नहीं है। वह तो सबसे पहले सोचेगा कि इस व्यवस्था में मेरा कितना स्वार्थ सधे? उसका ध्यान रहेगा अपने स्वार्थ पर। जब ध्यान स्वयं रखेगा तो अच्छी व्यवस्था कैसे दे पाएगा? वही तटस्थ है
- एक शब्द बहुत प्रचलित है-तटस्थता, मध्यस्थता। तटस्थ व्यक्ति अच्छी व्यवस्था दे सकता है। पक्षपात-ग्रस्त व्यक्ति कभी अच्छी व्यवस्था नहीं दे सकता। पक्षपात रहित व्यक्ति ही अच्छी व्यवस्था दे सकता है। तटस्थ वही हो सकता है, जिसका अपने संवेगों पर नियंत्रण है। वह अपने-संवेगों के आधार पर नहीं चलता किन्तु संवेगों
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org