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________________ १२८ तब होता है ध्यान का जन्म पहुंचता है, उतना शराब से भी नहीं पहुंचता। शराब से भी ज्यादा भयंकर तम्बाकू को माना जा रहा है। कैंसर, हार्ट की बीमारी, फेफड़े की विकृति आदि-आदि के लिए तम्बाकू बहुत जिम्मेवार है। तम्बाकू पीने वाला इन बीमारियों से ग्रस्त हो जाता है। विज्ञापन का आकर्षण बहुत सारे लोग जर्दा खाते हैं, खाते ही मुंह से दुर्गन्ध आने लगती है। जर्दे में ऐसी सुगंध डाल देते हैं कि वह मन को ललचा देती है। मैंने कुछ लोगों से पूछा-'जर्दा क्यों खाते हो?' 'महाराज ! ऐसे ही खाते हैं।' 'क्या शरीर को कोई लाभ पहुंचाता है जर्दा?' 'नहीं, लाभ तो नहीं पहुंचाता।' 'फिर क्यों खाते हैं?' 'आदत-सी पड़ गई है और बड़ा अच्छा भी लगता है।' आपने इन नशीले पदार्थों के विज्ञापन देखे होंगे। विज्ञापन में ऐसा बढ़िया चित्र खींच देते हैं कि जो नहीं खाता है उसका मन भी ललचा जाता है। किसी प्रसिद्ध सिने अभिनेता के मुख से कहलवाते हैं-क्या लाजवाब सुगंध! आह! आह!' ऐसा विज्ञापन देखते ही आदमी सोचता है-अरे! यह तो बहुत बढ़िया चीज है और व्यक्ति उसको खाने-पीने के लिए आतुर बन जाता है। प्रचलन भांग का तम्बाकू ने आज बहुत सारी बीमारियां पैदा की हैं। जैसे-जैसे अनुसंधान हो रहे हैं, तम्बाकू के परिणाम समाज के सामने आते चले जा रहे हैं। भांग, गांजा, चरस से भी थोड़ा पागलपन आ जाता है, पर उतना नहीं आता। मैं अपना अनुभव बतलाता हूं। मैं नौ-दस बरस का था। रामगढ़ गया। प्रतिष्ठित पोद्दार परिवार ने मुझे भोजन के लिए निमंत्रित किया। वहां मुझे ठंडाई पिलाई गई। ठंडाई में थी भांग। जब पीने के बाद सिर चकराने लगा तब ऐसा लगा-जैसे धरती ऊपर जा रही है और आकाश नीचे आ रहा है दुनिया उल्टी घूमती हुई दिखाई देने लगी। बड़ा विचित्र-सा दिखने लगा, फिर पता चला-इसमें तो भांग थी। भांग खाने वाले कुछ लोग भांग का पूरा गोला खा जाते हैं। जैसे-जैसे उसका नशा चढता है फिर कुछ पता नहीं चलता। चिन्तित है विश्व समाचार पत्र में पढ़ा-कुछ लोग नशे के इतने आदी हो जाते हैं कि सांप का डंक न लगे तब तक उनको चैन नहीं मिलता। जब मरफिया का इंजेक्शन लगता है या सांप डंक मारता है, तब शांति मिलती है। इतना जहर शरीर में घुल जाता है कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003158
Book TitleTab Hota Hai Dhyana ka Janma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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