________________
ध्यान और परिवार
१२५ 'भाई ! तुम्हें पता कैसे चला?'-पिता का आवेश विस्मय मे बदल गया।
'अरे ! इसमें पता चलने की क्या बात है? यह तो बिल्कुल साधारण बात है। मां के हाथ से फूटा और एक मिनट में आवाज बंद हो गई। अगर मेरी पत्नी के हाथ से फूटता तो घण्टा भर तक वह आवाज बंद ही नहीं होती। उस टंकार के साथ झंकार भी होता रहता।'
बर्तन फूटने की टंकार तो एक मिनट में ही बंद हो जाती है किन्तु जो गालियां देने की झंकार है, वह घण्टों तक चलती रहती है। यह सारा क्यों होता है? इसमें पदार्थ ही निमित्त बनता है। बड़े के हाथ से फूट जाए तो छोटा चुप रह जाए और छोटे के हाथ से फूट जाए तो बड़े की झंकार कभी बंद नहीं होती। पदार्थ जगत् में ये सारे झगड़े पैदा होते है।
हम इस सचाई को जान लें। परिवार में जितना कलह और संघर्ष होता है, वह पदार्थ के कारण ही होता है। जो लोग पदार्थ का जीवन जीते हैं, रात-दिन पदार्थ के बारे में सोचते रहते हैं वहां इनका होना अनिवार्य और अपरिहार्य है। इन्हें टालने का जो उपाय है, वह है आत्मा का ध्यान । जिमने चेतना का ध्यान किया, उनका पारिवारिक जीवन सुधर गया।
जैन साहित्य की एक प्रसिद्ध कथा है-अतुंकारी भट्टा। जब तक वह पदार्थ के प्रति प्रतिबद्ध रही, घर से निकाल दी गई, लोग उठाकर ले गए। खून निकाला गया। उसने बहुत पीड़ा का अनुभव किया। क्रोध के कारण, अशांति के कारण, असह्य दु:ख भोगा। जब उसे भान हुआ, वह संभल गई। पदार्थ से हटकर आत्मा की स्थिति में आ गई। पारिवारिक जीवन सुखद बन गया। वह शांति और क्षमा की मूर्ति बन गई । कहा जाता है-देवता उसे विचलित करने आया फिर भी वह विचलित नहीं हुई। उसके जीवन का एक चित्र यह था-यदि उसे कोई तुंकारा दे दे तो वह उसका सिर फोड़ देती और एक चित्र यह बना-वह सचमुच अतुंकारी बन गई। उसे तुंकारा देने वाला मिला ही नहीं। पारिवारिक शांति का महामंत्र
____ हम आत्मा का ध्यान करें, आत्मा के बारे में सोचें-मैं जड़ नहीं हूं, मैं पैसा नहीं हूं, मैं मकान नहीं हूं, मैं कपड़ा नहीं हूं, मैं आत्मा हूं। जैसे ही यह दृष्टिकोण बनेगा, जीवन का क्रम बदल जाएगा, सुख और शांति का स्रोत फूट पड़ेगा। जब तक यह दृष्टिकोण नहीं आएगा तब तक अशांति और दु:ख का जीवन बना रहेगा। दोनों बातें हमारे सामने स्पष्ट हैं। एक ओर पारिवारिक जीवन की समस्याएं हैं और वे समस्याएं पदार्थपरक दृष्टिकोण के द्वारा उत्पन्न हुई हैं। उन्हें भोगना पड़ेगा, चाहे व्यक्ति कितना
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org