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________________ वह ज्ञाता होना चाहता है महत्त्वपूर्ण प्रश्न __ आईस्टीन से पूछा गया-आप क्या होना चाहते हैं ? भाईंस्टीन ने कहा-मैंने वर्तमान जीवन में ज्ञेय को जानने का प्रयत्न किया है । अगले जन्म में मैं संत होना चाहता हूं। वह इसलिए कि मैं ज्ञाता को, जानने वाले को जान सकं । आज तक जो जानने योग्य है, उसे जानता रहा हूं, किन्तु अब जो ज्ञाता है, जानने वाला है, उसे जानना चाहता हूं। ज्ञाता को जानने का प्रश्न बहुत महत्त्वपूर्ण है। कांट ने कहा-ज्ञाता को जाना नहीं जा सकता । ज्ञाता ज्ञेय नहीं बनता । अगर ज्ञाता ज्ञेय बने तो वह पदार्थ बन जाएगा। इस आधार पर उन्होंने इस बात का खंडन कर दिया। एक ओर प्रश्न है--मैं ज्ञाता को जानना चाहता हूं, दूसरी ओर प्रश्न है-ज्ञाता अज्ञेय है, वह ज्ञेय नहीं बनता । इन दोनों प्रश्नों के संदर्भ में हमें अपना निर्णय करना है। जहां परस्पर दो विरोधी बातें प्रस्तुत होती हैं वहां निर्णय करने के लिए अनेकांत का सहारा लेना पड़ता है । विसंगति और विरोधाभास की स्थिति में अनेकांत के द्वारा समाधान का मार्ग खोजा जा सकता है । काण्ट का अभिमत ज्ञाता ज्ञेय नहीं बनता, इस आशंका के पीछे कुछ हेतु हैं । एक हेतु हैं - ज्ञाता अमूर्त है, अभौतिक है, निराकार है। ज्ञेय बनता है पदार्थ । वह द्रव्य है । ज्ञाता-आत्मा पदार्थ नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003157
Book TitleNavtattva Adhunik Sandarbh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, B000, & B010
File Size3 MB
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