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नवतत्त्व : आधुनिक संदर्भ तिक नियमा स बंधा हुआ है। प्राकृतिक, जागतिक नियमों (Universai Law) से कोई भी मुक्त नहीं है। हम वर्तमान में अच्छा ज्ञान करें, अच्छा आचरण और व्यवहार करें, हमारे हाथ में इतना ही है। यदि हमारा वर्तमान अच्छा है तो भविष्य अच्छा होगा । मोक्ष आखिर है कहां? वह कहीं बाहर नहीं है। आत्मा से भिन्न नहीं है परमात्मा । आत्मा ही परमात्मा में परिणत हो जाता है, बदल जाता है। परमात्मा का बीज है आत्मा । जब बीज प्रस्फुटित होता है, परमात्मा बन जाता है । हम परमात्मा को बाहर खोजेंगे तो वह नहीं मिलेगा। यात्रा करें भीतर की
__ मध्यकालीन संतों ने इस सचाई को बहुत उजागर किया कि तुम बाहरी तीर्थों को यात्रा करते हो किन्तु असली तीर्थ तुम्हारे भीतर है । कस्तूरी मृग बाहर ही बाहर दौड़ता रहता है, किन्तु अपनी नाभि में बसी कस्तूरी से अनजान बना रहता है। तुम बाहर की यात्रा बंद करो, अपने भीतर आओ। ध्यान का महत्त्व इसी बिंदु पर आधारित है। समस्या यह हभीतर की खोज नहीं चलती, हम बाहर की यात्रा में ही उलझे हुए हैं। हम एक बार बाहरी यात्रा को स्थगित कर, भीतर की यात्रा आरंभ करें। भीतर की यात्रा करने का अर्थ है - ध्यानसाधना और इसी यात्रा का नाम है- आत्मा से परमात्मा तक पहुंचना। यही है मोक्ष
यदि यह पूछा जाए -- आत्मा और परमात्मा में दूरी कितनी ह ? तो मेरा उत्तर होगा-ज्यादा से ज्यादा एक मीटर । हम शक्तिकेन्द्र से ज्ञान केन्द्र की यात्रा करें, यह
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