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क्या दरवाजा बंद है ? तो उसकी सिद्धि के लिए साधना करनी होगी। बहुत आवश्यक है साधना करना । संवर की साधना के कुछ उपाय हैं। उन उपायों को काम में लिए विना संवर सिद्ध नहीं होता। आचार्य उमास्वाति ने संवर की साधना के कुछ उपाय बतलाए हैं । वे ये हैं-गुप्ति, समिति, धर्म, अनुप्रेक्षा, परीषह-विजय और चारित्र। कायगुप्ति
संवर की साधना का सबसे पहला उपाय है गुप्ति । गुप्तियां तीन हैं-काय-गुप्ति, वाक्-गुप्ति और मनोगुप्ति । शरीर, वाणी और मन-इनका गोपन करना, संरक्षण करना एक महत्त्वपूर्ण उपाय है। आश्रव अनेक हैं, दरवाजे अनेक हैं । एक दरवाजा बन्द करने से सारे दरवाजे बन्द नहीं होते । सबसे बड़ा दरवाजा है शरीर का । इसमें बाहर से बहुत कुछ आ रहा है। हम इसे बन्द करें ताकि इसमें बाहर से ऐसा कुछ न आए, जो हमें दुःख दे, सताए। कायगुप्ति है-कायोत्सर्ग, शरीर को स्थिर बना लेना। शरीर की स्थिरता सधी, काय-गुप्ति हो गई । जो व्यक्ति कायोत्सर्ग नहीं करता, काया की गुप्ति नहीं करता और संवर भी चाहता है, उसका संवर कभी सिद्ध नहीं होता । उसका संकल्प मात्र संकल्प ही रह जाता है। संकल्प की परिपक्वता के लिए, संवर की सिद्धि के लिए आंच देनी होगी। वह आंच कायगुप्ति के द्वारा सम्भव है। वागगुप्ति : मौन
सबसे पहली बात है स्थिरता । साधना का प्रथम सूत्र है स्थिरता, चंचलता को कम करना । चंचलता कम होगी तो
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