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प्रस्तुति
महावीर की साधना पद्धति का सर्वांगपूर्ण सूत्र है -नव तत्त्ववाद | जीव और मोक्ष, आत्मा और परमात्मा एक बीज दूसरा निष्पत्ति । आत्मा परमात्मा हो सकती है। उसकी प्रक्रिया साधनात्मक है। उसके मूल तत्त्व दो हैं-संवर और निर्जरा । संवर निरोधात्मक तत्व है । निर्जरा विशोधनात्मक तत्त्व है । भविष्य का निरोध और अतीत का विशोधन होने पर ही वर्तमान परमात्मा की अनुभूति का हो सकता है । नव तत्त्ववाद में मोक्ष या परमात्मा के बाधक और साधक तत्त्वों का गंभीर विवेचन किया गया है। प्रस्तुत पुस्तक में उसकी आधुनिक शैली में प्रस्तुति है । इससे गहराई में उतर कर हृदय का स्पर्श करने की सुविधा हो सकती है ।
मुनि दुलहराजजी प्रारम्भ से ही साहित्य संपादन के कार्य में लगे हुए हैं। वे इस कार्य में दक्ष हैं । प्रस्तुत पुस्तक के संपादन में मुनि धनंजयकुमार ने निष्ठापूर्ण श्रम किया है ।
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आचार्य महाप्रज्ञ
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