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________________ २२ नवतत्त्व : आधुनिक संदर्भ रिक-दोनों है । एक व्यक्ति बहुत अच्छा आचरण करने वाला है पर चलते-चलते भीतर में जो पाप का प्रवाह था, उसका उदय हो गया और व्यक्ति का आचरण बदल गया। मनोवैज्ञानिकों ने चेतन और अचेतन के आधार पर व्यक्तित्व की व्याख्या करने का प्रयत्न किया। उनके सामने कर्मवाद का सिद्धान्त नहीं था, पुण्य और पाप का सिद्धान्त नहीं था, इसीलिए उनकी व्याख्या पूर्ण नहीं बन पाई। मानवीय व्यवहार की व्याख्या तब तक पूर्णता के साथ नहीं की जा सकती जब तक पुण्य, पाप, बंध और आश्रव की प्रक्रिया को नहीं समझा जाता। इन्हीं चार आधारों पर कर्मवाद चलता है। इनको समझे बिना मानव-व्यवहार की सम्यक् व्याख्या नहीं की जा सकती। दोनों तरफ चलें ___ व्यवहार के संदर्भ में हमें यह स्वीकार करना होगा कि भीतर से कोई अच्छा प्रवाह आ रहा था, तब तक सब ठीकठाक चल रहा था। भीतरी प्रवाह बदला और व्यक्ति का आचरण बदल गया। आचरण और व्यवहार की व्याख्या भीतरी प्रवाह के आधार पर, कर्म विपाक के आधार पर करनी होगी। आज एक आदमी बुरा आचरण कर रहा है पर अच्छा कहला रहा है, सुख भोग रहा है । इसका अर्थ है -भंडार में से कुछ आ रहा है । एक आदमी अच्छा आचरण कर रहा है पर बुरा कहला रहा है, दुःख भोग रहा है। इसका अर्थ है-- भंडार में से कुछ आ रहा है। व्याख्या करने के लिए दोनों तरफ चलना होगा-भीतर से बाहर और बाहर से भीतर। दोनों प्रणालियां चल रही हैं। बाहर वाला भीतर को फीड कर रहा है, भीतर वाला बाहर को फीड कर रहा है। इन दोनों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003157
Book TitleNavtattva Adhunik Sandarbh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, B000, & B010
File Size3 MB
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