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________________ "" अपना पूज्य ग्रन्थ बतलाते हैं * इससे आश्चर्य नहीं कि कुरलके रचयिता भगत्कुन्दकुन्द ही हों । कहते हैं एलाचार्यने इसे रचकर अपने एक शिष्यको इस लिए दे दिया था कि वह मदुराके कविसंघ में जाकर पेश करे । नन्दिसंघकी गुर्वावली में लिखा है कि भगवत्कुन्दकुन्दको वि० संवत् ४९ में आचार्यपद मिला और १०१ में उनका स्वर्गवास हुआ। तामिलदेश के विद्वाair कुरलकाव्यका रचना - काल भी ईसाकी पहली शताब्दि निश्चित किया है । यदि सचमुच ही वह इन्हीं एलाचार्यका बनाया हुआ है, तो पहावलीके समय के साथ उसका रचनाकाल मिल जाता है । हमने अपने पूर्वोल्लिखित लेखमें भगवत्कुन्दकुन्दका समय विक्रमकी तीसरी शताब्दि निश्चित किया था । उसके बाद जैन सिद्धान्त - प्रकाशिनी संस्थाद्वारा प्रकाशित समयप्राभृत' की भूमिकामें दक्षिण के सुप्रसिद्ध इतिहासज्ञ प्रो० के० बी० पाठकका यह मत प्रकाशित हुआ है कि कुन्दकुन्दाचार्य वि० संवत् ५८५ के लगभग हुए हैं। अपने मतकी पुष्टिमें उन्होंने लिखा है कि जिस समय राष्ट्रकूट वंशीय राजा तृतीय गोविन्द राज्य करता था उस समय, शक संवत् ७२४ का लिखा हुआ एक ताम्रपत्र मिला है । उसमें निम्नलिखित पद्य दिये हुए हैं: ――――― कोण्डकोन्दान्वयोदारो गणोऽभूद्भुवनस्तुतः । तदैतद्विषयविख्यातं शाल्मलीग्राममावसन् ॥ आसीद (?) तोरणाचार्यस्तपः फलपरिग्रहः । तत्रोपशम संभूतभावनापास्तकल्मषः ॥ पण्डितः पुष्पनन्दीति बभूव भुवि विश्रुतः । अंतेवासी मुनेस्तस्य सकलश्चन्द्रमा इव ॥ प्रतिदिवसभवद्वृद्धिर्निरस्तदोषो व्यपेतहृदयमलः । परिभूतचन्द्रविम्बस्तच्छिष्योऽभूत्प्रभाचन्द्रः ॥ Jain Education International < उक्त तृतीय गोविन्द महाराजके ही समयका शक संवत् ७१९ का एक और ताम्रपत्र मिला है, जिसमें नीचे लिखे पद्य हैं: * देखो जैनहितैषी भाग १५ अंक १-२ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003149
Book TitleShatprabhutadi Sangraha
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorPannalal Soni
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages494
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size18 MB
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