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________________ ६प्राकृतव्याकरण। यह ग्रन्थ हमें अभी तक प्राप्त नहीं हुआ। यशस्तिलकटीकामें एक जगह उन्होंने अपने लिए यह विशेषण भी दिया है-“प्राकृतव्याकरणाद्यनेकशास्त्ररचनाचबुना।" इससे और षट्पाहुइटीकामें जो जगह जगह प्राकृत व्याकरणके सूत्र दिये हैं उनसे भी मालूम होता है कि इनक बनाया हुआ कोई प्राकृत व्याकरण अवश्य है। इस ग्रन्थका पता लगाने की बहुत आवश्यकता है। । इनके सिवाय तर्कदीपक, विक्रमप्रबन्ध, श्रुतस्कन्धावतार, आशाधरकृत पूजाप्रबन्धकी टीका, बृहत्कथाकोश आदि और भी कई ग्रन्थ इनके बनाये हुए कहे जाते हैं। । इन्होंने अपने किसी भी ग्रन्थमें अपने समयका उल्लेख नहीं किया है; परन्तु यह प्रायः निश्चित है कि ये विक्रमकी १६ वीं शताब्दिमें हुए हैं । क्यों कि १-ऊपर जिस महाभिषेकटीकाकी प्रतिका उल्लेख किया गया है वह वि० सं० १५८२ की लिखी हुई है और वह भट्टारक मल्लिभूषणके उत्तराधिकारी लक्ष्मीचंद्रके शिष्य ब्रह्मचारी ज्ञानसागरके पढ़ने के लिए दान की गई है और इन लक्ष्मीचन्द्रका उल्लेख श्रुतसागरने स्वयं अपनी टीकाओंमें कई जगह किया है । २-आराधनाकथाकोशके कर्ता ब्र० नेमिदत्त वि० १५७५ के लगभग हुए हैं और वे श्रुतसागरके गुरुभ्राता मल्लिषेणके शिष्य थे। ३-स्वर्गीय बाबादुलीचन्दजीकी सं० १९५४ की बनाई हुई हस्तलिखित ग्रन्थोंकी सूची में श्रुतसागरका समय वि० संवत् १५५० लिखा हुआ है। ४--षदप्राभृतटीकामें जगह जगह लोंकागच्छपर तीव्र आक्रमण किये गये हैं और श्वेताम्बरसम्प्रदायमेंसे यह मूर्तिपूजाका विरोधी पन्थ वि० संवत् १५०८ के लगभग स्थापित हुआ है । अतएव श्रुतसागरका समय इसकी स्थापनासे अधिक नहीं तो ४०-५० वर्ष पीछे अवश्य मानना चाहिए। ग्रन्थ-सम्पादन । इस संग्रहका सम्पादन और संशोधन पण्डित पन्नालालजी सोनीने नीचे लिखी प्रतियोंसे किया है । जिन जिन सज्जनोंने इस कार्य के लिए ग्रन्थ भेजनेक कृपा की है, उनके प्रति हार्दिक कृतज्ञता प्रकट किये बिना हमसे नहीं रहा जाता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003149
Book TitleShatprabhutadi Sangraha
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorPannalal Soni
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages494
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size18 MB
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