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________________ निश्चित किया है। अतएव भट्टाकलंकदेवका समय भी इसीके लगभग निश्चित होता है और चूकि प्रभाचन्द्रने उनसे बोध प्राप्त किया था, तथा प्रभाचन्द्र विद्यानन्दका स्मरण करते हैं तथा विद्यानन्द अकलंकदेवके ग्रन्थों के टीकाकार हैं, अतः विद्यानन्दका अस्तित्व वि० सं० ८३२ से ८६५ के बीचमें माना जाना चाहिए। विद्यानन्दस्वामी अनेक तर्क ग्रन्थों के रचयिता हैं। उनमें से अष्टसहमी ( आप्तमीमांसालङ्कार ), श्लोकवार्तिकालङ्कार ( तत्वार्थालङ्कार ), आप्तपरीक्षा, पत्रपरीक्षा, प्रमाणपरीक्षा, पात्रकेसरीस्तोत्र और युक्त्यनुशान टीका ये ग्रंथ छप चुके हैं। प्रमाणमीमांसा, प्रमाणनिर्णय, विद्यानंदमहोदय, बुद्धेशभवन व्याख्यान, और आप्तपरीक्षालकृति नामक ग्रंथ अभीतक अनुपलब्ध हैं। * प्रस्तुत ग्रन्थ, स्वामी समन्तभद्रके स्तोत्रग्रन्थकी टीका है। इसकी एक प्रति हमें जैनन्द्रप्रेसके स्वामी पण्डित कल्लापा भरमापानिटवेकी कृपासे प्राप्त हुई थी जो उन्होंने किसी कनडीप्रतिपरसे एक विद्वानके द्वाग लिखाई थी और दूसरी प्रति स्याद्वादपाठशाला काशीके सरस्वती भवनसे पण्डित उमरावसिंहजीकी कृपासे प्राप्त हुई थी। इन दोनो प्रतियोंपरसे इसकी प्रेस कापी साहित्य शास्त्री पं० इन्द्रलालजी चांदूवाडने की हैं और प्रूफ-संशोधन पं० श्रीलालजी काव्यतीर्थने किया है। * जैन हितैषी भाग ९ अंक ९ में प्रकाशित हुए विस्तृत लेखका सारांश । Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003148
Book TitleYuktyanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandacharya, Indralal Pandit, Shreelal Pandit
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages198
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
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