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________________ ( ३ ) आक्षेप किया है और उनका निवारण अकलंकदेवके शिष्य विद्यानन्दने अष्टसहस्री में जगह जगह किया है। श्रीयुक्त पं० बाबू काशीनाथजी पाठक बी० ए० ने इस विषय में एक बडाही महत्वपूर्ण लेख प्रकाशित किया है और उक्त विद्वानोंके प्रन्थोंकी भीतरी जांच कर बतलाया है कि कुमारिलभट्ट और अकलंकदेव एक ही समय में हुए हैं, और कुमारिल अकलंकदेव के कुछ बादतक जीवित रहे हैं । कुमारिलभट्टका समय वि० सं० ७५७ से १७ तक निश्चित है । अतएव विद्यानन्द स्वामी भी लगभग इसी समयमै अथवा इससे कुछ पीछे हुए होंगे । ३ चिद्वेिलास कृत 'शंकरविजय' से मालूम होता है कि मण्डनमिश्रका दूसरा नाम सुरेश्वर था और सुरेश्वर आद्य शंकराचार्यका शिष्य था । आद्य शंकराचार्यका समय वि० सं० ८०७ से ८६५ तक निश्चित किया गया है, अतएव मण्डन मिश्रका भी लगभग यही समय मानना चाहिए। इस मण्डन मिश्र के 'वृहदारण्यक वार्तिक' के कई श्लोकों को विद्यानन्द स्वामीने अष्टसहस्री में तद्धृत कर उनका खण्डन किया है । इससे विद्यानन्दका समय भी वि० सं० ८ १५ के लगभग मानना चाहिए । ४ परन्तु उनका समय वि० सं० ८९५ से और पीछे नहीं माना जा सकता । क्योंकि इसी समय अर्थात् शक संवत् ७६० ( वि० सं० ८९५ ) के लगभग भगवज्जिनसेनने आदि पुराणकी रचना की है और उसके प्रथम पर्व में उन्होंने पात्रकेसरी या विद्यानन्द स्वामीका स्मरण किया है: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003148
Book TitleYuktyanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandacharya, Indralal Pandit, Shreelal Pandit
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages198
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
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