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श्रीविद्यानन्द स्वामी।
जैनधर्मके दार्शनिक और नैयायिक विद्वानोंमें 'विद्यानन्दि' या 'विद्यानन्द स्वामी' बहुत प्रसिद्ध आचार्य हुए हैं । ये 'पात्रकेसरी' नामसे भी प्रसिद्ध हैं। __इनके विषयमें एक कथा प्रसिद्ध है जिसके अनुसार वे मगधराज्यके अहिच्छत्र नामक नगरके निवासी थे और अपनी पूर्वावस्थामें वेदानुयायी ब्राह्मण थे। स्वामी समन्तभद्रके 'देवागमस्तोत्र या 'आप्तमीमांसा' नामक ग्रन्थका पाठ करनेसे उन्हें जैनदर्शन पर श्रद्धा हो गई थी और तब वे जैनधर्ममें दीक्षित हो गये थे। मालूम नहीं, इस कथामें सत्यांश कितना है । पर इतना अवश्य है कि विद्यानन्दस्वामीके जीवनका अधिकांश दक्षिण और कर्नाटकमें ही व्यतीत हुआ होगा। उनके सहयोगी अकलंक, प्रभाचन्द्र, माणिक्यनन्दि और प्रतिद्वन्द्वी कुमारिल, मण्डनमिश्र आदि सब कर्नाटकही हुए हैं । हुमचा जिला शिमोगाके शिलालेखमें विद्यानन्द स्वामीका जिन अनेक राजाओंकी सभाओं में जाकर विजय प्राप्त करना लिखा है वे सब दक्षिण और कर्नाटकके ही हैं। इससे उनका दाक्षिणात्य या कर्नाटकी होना ही अधिक संभव जान पडता है।
कहा जाता है कि वे नन्दिसंघके आचार्य थे। परन्तु हमारी
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