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________________ ग्रीस और यूरोप में धर्म और दर्शन दोनों साथ- साथ नहीं अपितु एक दूसरे के विरोध में भी खड़े हैं, जिसके फलस्वरूप जीवन में जो आनन्द की अनुभूति होनी चाहिए वह नहीं हो पाती। पाश्चात्य विचारकों ने धर्म में बुद्धि, भावना और क्रिया-ये तीन तत्त्व माने हैं। बुद्धि से तात्पर्य है ज्ञान, भावना का अर्थ है श्रद्धा, और क्रिया का अर्थ है आचार। जैन दृष्टि से भी सम्यक्श्रद्धा, सम्यक्ज्ञान और सम्यक्चारित्र ये तीनों धर्म हैं। हेगेल' और 'मैक्समूलन' ने धर्म की जो परिभाषा की है उसमें ज्ञानात्मक पहलू पर ही बल दिया है और दो अंशों की उपेक्षा की है। काण्ट ने धर्म की जो परिभाषा की, उसमें ज्ञानात्मक के साथ क्रियात्मक पहलू पर भी लक्ष्य दिया, पर भावनात्मक पहलू की उसने भी उपेक्षा कर दी। किंतु मार्टिन्यू ने धर्म की जो परिभाषा प्रस्तुत की, उसमें विश्वास, विचार और आचार इन तीनों का मधुर समन्वय है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो भक्ति, ज्ञानऔर कर्म इन तीनों को उसने अपनी परिभाषा में समेट लिया है। धर्म और दर्शन का क्षेत्र पाश्चात्य विचारकों की दृष्टि से धर्म और दर्शन का विषय सम्पूर्ण विश्व है। दर्शन मानव की अनुभूतियों की तर्कपुरस्सर व्याख्या करके सम्पूर्ण विश्व के आधारभूत सिद्धान्तों की अन्वेषणा करता है। धर्म भी आध्यात्मिक मूल्यों के द्वारा सम्पूर्ण विश्व का विवेचन करने का प्रयास करता है। धर्म और दर्शन में दूसरी समता यह है कि दोनों मानवीय ज्ञान की योग्यता में, यथार्थता में, चरम तत्त्व में विश्वास करते हैं। दर्शन में मेधा की प्रधानता है तो धर्म में श्रद्धा की। दर्शन बौद्धिक आभास है, धर्म आध्यात्मिक विकास है। दर्शन सिद्धान्त को प्रधानता देता है तो धर्म व्यवहार को। आज के युग में यह प्रश्न पूछा जाता है कि धर्म और दर्शन का जन्म कब हुआ? इस प्रश्न के उत्तर में संक्षेप में इतना ही लिखना पर्याप्त होगा कि वर्तमान इतिहास की दृष्टि से इसकी आदि का पता लगाना कठिन है। इसके लिए हमें प्रागैतिहासिक काल में जाना होगा, जिस पर हम अगले पृष्ठों पर चिन्तन करेंगे। किन्तु यह सदा स्मरण रखना चाहिए कि दर्शन के अभाव में धर्म अपूर्ण है और धर्म के अभाव में दर्शन भी अपूर्ण है। मानव-जीवन को सुन्दर, सरस व मधुर बनाने के लिए दोनों ही तत्त्वों की जीवन में अत्यन्त आवश्यकता है। आधुनिक मनीषा को एक और प्रश्न भी झकझोर रहा है कि धर्म और विज्ञान में परस्पर क्या सम्बन्ध है ? यहाँ विस्तार से विवेचन करने का प्रसंग नहीं है। संक्षेप में इतना ही बताना आवश्यक है कि धर्म का सम्बन्ध आन्तरिक जीवन से अधिक है और विज्ञान का सम्बन्ध बाह्य जगत् (प्रकृति) से है। धर्म का प्रधान उद्देश्य मुक्ति की साधना है और विज्ञान का प्रधान उद्देश्य है प्रकृति का अनुसंधान। विज्ञान में सत्य की तो प्रधानता है, पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003143
Book TitleChobis Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherUniversity of Delhi
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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