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________________ देव, गुरु और धर्म ५५ हमा। पर इस हकीकत को नकारा नहीं जा सकता कि लोक व्यवहार की दृष्टि से वेशभूषा भी साधु के पहचान का कारण बनती है । किन्तु निश्चय दृष्टि से साधु की पहचान वेशभूषा या बाह्य परिवेश नहीं है । भ• महावीर ने भी कहा -“नवि मंडिएपा समणो”—मुण्डन करा लेने से कोई श्रमण नहीं बन जाता। अन्तरङ्ग साधना ही साधु की मही पहचान है। विमल-हमारे यहां गुरु को इतना महत्त्व क्यों दिया गया जबकि सच्चा मार्ग दिखाने वाले तो अरहन्त होते हैं ? मुनिवर-मार्ग दिखाने वाले तो अरहन्त हैं पर उस मार्ग पर चलने की प्रेरणा देने वाले गुरु ही होते हैं। प्रकाश होने पर भी अगर आंख नहीं है तो व्यक्ति के लिये सर्वत्र अन्धकार है वैसे ही अर्हतों ने मार्ग तो बतला दिया पर ज्ञान की आंख अगर नहीं खुली तो सही रास्ता सामने होने पर भी व्यक्ति उन्मार्ग की ओर प्रस्थान कर सकता है। यह ज्ञान की आंख खोलने वाले गुरु ही होते हैं। तुलसीदासजी से पूछा गया- गुरु, और भगवान दोनों में सबसे पहले किसको वन्दन करना चाहिए ।। उन्होंने बताया--पहले गुरु को वन्दन करना चाहिए क्योंकि उन्होंने भगवान से परिचय करवाया। "गुरु गोविन्द दोऊ खड्या कांके लागू पाय, बलिहारी गुरुदेव की गोविन्द दियो बताय ॥" एक राजस्थानी लेखक ने लिखा है “गुरु कीजे जाण, पाणी पीजे छाण ।” गुरु की सही पहचान होनी जरूरी है। गुरु अगर स्वार्थी और लालची होगा तो वह परमार्थ का मार्ग नहीं बता सकेगा। निःस्वार्थी और त्यागी गुरु ही आत्म कल्याण का रास्ता बता सकते हैं और परम लक्ष्य तक पहुंचा सकते हैं। भिक्षु स्वामी ने तराजू की दण्डी के दृष्टान्त से गुरु की महत्ता को समझाया है । जिस तरह तराज़ की दण्डी में तीन छिद्र होते हैं, बीच वाले छिद्र में अगर थोड़ा भी फर्क होता है तो सन्तुलन गड़बड़ा जाता है, वस्तु का सही तोल नहीं हो सकता वैसे ही देव, गुरु और धर्म में मध्यवर्ती पद गुरु का है। गुरु अगर ठीक होते हैं तो देव और धर्म की भी ठीक पहचान हो जाती है। गुरु अगर आचारहीन और गलत होते हैं तो देव और धर्मा दोनों की सही अवगति नहीं हो पाती है। स्वयं बंधा हुआ दूसरों को क्या बन्धन मुक्त कर सकता है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003142
Book TitleBat Bat me Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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