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________________ बात-बात में बोध मुनि मतिधर-इसकी बीमारी शारीरिक नहीं है, मानसिक व भावनात्मक है। विकृत भावों से प्रभावित चित्त इस तरह अकारण ही भयभीत होता रहता है। ऐसी स्थिति में बाहरी उपचार से ज्यादा भीतरी उपचार कामयाब होता है। नमस्कार महामंत्र का जप इसका उत्तम निदान है। इसके निरन्तर स्मरण से व्यक्ति के भाव बदलते हैं और वह स्वस्थता का अनुभव करता है । तपन-कौन सा है वह महामंत्र मुनिराज ! मुनि मतिधर-वह मंत्र है-णमो अरहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व साहूणं । इसे नमस्कार महामंत्र कहते हैं। तपन-यह क्या ! इस मंत्र में किसी व्यक्ति का नाम तो पाया ही नहीं। इस ___ मंत्र के द्वारा हम किसका स्मरण करते हैं ? मुनि मतिधर--यही तो इस मंत्र की विशेषता है। इसमें किसी व्यक्ति का नाम नहीं किन्तु सभी गुणयुक्त आत्माओं का समावेश हो गया है । नाम और रूप तो मात्र पहचान के माध्यम हैं। वास्तव में वन्दन तो पवित्र आत्मा को ही किया जाता है, नाम चाहे कुछ भी हो। कमला-मुनिवर ! मेरा लड़का पहली बार आपके पास आया है। कृपा कर इसे विस्तार से मन्त्र के बारे में बतायें। मुनि मतिधर--- वत्स ! इस महामन्त्र के पांच पद हैं। ये पांचों पद आत्मा की अलग-अलग भूमिकाओं का निर्देश करते हैं। पहले पद में अर्हतों को नमस्कार किया गया है । अहं तु उन आत्माओं को कहते हैं जो सर्वोच्च योग्यता से सम्पन्न हैं, राग-द्वेष से मुक्त हैं, परमज्ञान के धनी हैं । शास्त्रीय शैली में कहें तो जिनके ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय ये चार घनघाती कर्म नष्ट हो गये हैं। इसके साथ छत्र, चंवर, भामण्डल आदि आठ प्रातिहार्य गुणों से जो संयुक्त होते हैं। तपन-मुनिवर ! वे अरिहंत हमारी तरह मनुष्य रूप में होते हैं या देव रूप में और वे इसी धरती पर रहते है या देव लोक में। मुनि मतिधर-अरहंत हमारे देव अर्थात् आराध्य होते हैं। वे हमारे जैसे मनुष्य ही होते हैं। वे जब तक शेष चार कर्मों को नष्ट नहीं कर देते तब तक इसी धरती पर रहते हैं। कम मुक्त होने पर वे निर्वाण पद को पा लेते है। दूसरे पद में सिद्धों को नमस्कार किया गया है। सिद्ध उन आत्माओं को कहते हैं जिन्होंने परम साध्य को पा लिया, जन्म मरण का बीज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003142
Book TitleBat Bat me Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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