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________________ बात-बात में बोध दोहन हो रहा है। शहर ऊपर खड़े हैं और नीचे मीलों तक गहरे खड्डे होते जा रहे हैं। कहीं-कहीं तो शहरों को रसातल में चले जाने का खतरा उत्पन्न हो गया है। इसी कारण कहीं-कहीं तो अन्वेषण के लिए होने वाली खुदाई को भी बन्द करना पड़ा है। जल जो कि मनुष्य के जीवन का आधार है, उसका अस्तित्व भी आज खतरे में पड़ रहा है। अनेक नदियों का पानी अब पीने लायक नहीं रहा है। कारखानों से निकलने वाला, विभिन्न जहरीले रसायनों से युक्त पानी नदी व तालाबों में मिलकर सारे पानी को दूषित कर देता हैं । फलस्वरूप पानी में रहने वाले जीवों की अपार क्षति होती है । अनेक शहरों के मलमूत्र के नाले भी नदियों में गिरकर उसको अशुद्ध बनाते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में यमुना नदी में दस करोड़ लीटर मल गिरता है, उसमें दो करोड़ लीटर कचरा फेक्ट्रियों द्वारा छोड़ा जाता है। एक बार संसद सदस्य मुरलीमनोहर जोशी ने कहा था “दिल्ली के पानी में इतना अमोनिया हो गया है कि वह पेशाव की तरह अपेय हो गया है।" मनुष्य अगर जल का संयम करना सीख लेता या उसे दूषित नहीं करता तो शायद जल प्रदूषण की समस्या विकराल रूप नहीं लेती। अग्नि और वायु का असंयम भी प्रदूषण का कारण बनता है। आज कारखानों की भट्टियों में प्रतिदिन कई लाख टन इन्धन और कोयला काम में आता है। उससे निकलने वाला धुआं हवा को विषाक्त बना देता है। शहरों में कई दफा सांस लेते समय घुटन महसूस होने लगती है और नाक में काले काले धूल के कण जम जाते हैं । कहते हैं कि वर्ष भर में एक व्यक्ति को जितनी ऑक्सीजन श्वसन प्रक्रिया के लिए चाहिए उतनी ऑक्सीजन एक टन कोयला जलने से नष्ट हो जाती है। वैज्ञानिकों ने कहा है-उद्योग धन्धों व अन्य कार्यों में जलाने के लिए कोयला इसी मात्रा में अगर काम में आता रहा और प्रदूषण को रोकने का कोई उपाय नहीं हुआ तो दस वर्षे बाद भारत में तेजाबी वर्षा की घटनाएं भी घटित हो सकती हैं। धरती पर चलने वाले वाहन भी अपार मात्रा में धुआं छोड़ते हैं जो कि ऑक्सीजन के साथ मिलकर हमारे श्वास में चला जाता है और अस्वास्थ्य का कारण बनता है। यदि यही स्थिति रही 'तो धरती पर आने वाले सौ वर्षों में कार्बन डाइ ऑक्साइड की मात्रा दुगुनी हो जायेगी। शुद्ध श्वास For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003142
Book TitleBat Bat me Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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