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________________ बात बात में बोध ओमप्रकाश-यह तो अध्यात्मशास्त्रीय विवेचन आपने किया, क्या वैज्ञानिक दृष्टि से भी अत्यधिक प्रवृत्ति घातक हैं ? मुनिवर--अध्यात्म और विज्ञान की भाषा में बहुत अधिक समानता है । विज्ञान भी बताता है कि हर प्रवृत्ति के साथ व्यक्ति के शरीर में लैक्टिक एसिड बनता है। प्रवृत्ति ज्यादा होने के कारण लैक्टिक एसिड की मात्रा बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। उसी का कारण है थकान, आलस्य, बैचेनी आदि। नींद में वह अम्ल वसर्जित होता है तभी व्यक्ति जगने पर अपने में तरोताजगी एवं स्फूर्ति का अनुभव करता है। नींद के अभाव में उस एसिड की कमी नहीं होती, उसी के कारण व्यक्ति भारीपन व चिड़चिड़ेपन का अनुभव करता है और स्वयं को शक्तिहीन महसूस करने लगता है । ओमप्रकाश-क्या यन्त्रों के द्वारा व्यक्ति की शक्ति हीनता को मापा जा मकता है ? मुनिवर--हाँ, वैज्ञानिकों ने इस प्रकार के यन्त्रों का आविष्कार किया है जो प्रवृत्ति में संलग्न व्यक्ति से निकलने वाली ऊर्जा को संगृहीत कर लेते हैं। एक यन्त्र, जिसका नाम “पावलिता जेनरेटर” है। उस यन्त्र पर पांच मिनट एक टक देखते रहे तो देखने में खर्च होने वाली ऊर्जा को वह अपने में जज्ब कर लेता है फिर उस यन्त्र को उठाने पर उसमें संगृहीत शक्ति का अनुभव होता है। प्रवृत्ति के साथ निवृत्ति का तालमेल व्यक्ति को स्वस्थता, शक्तिमत्ता प्रदान करता है । अब आप छोड़ने की बात को भी समझ ले। जैन धर्म में कुछ चीजे पूर्णतः परित्याज्य हैं, जैसे--शराब, मांस, व्यभिचार, जुआ, शिकार आदि । कोई भी शिष्ट व्यक्ति इनको अपनाना उचित नहीं मानेगा। कुछ चीजों के लिए यथाशक्ति छोड़ने की बात जैन धर्म में कही गयी है, जे से--हिंसा, असत्य, चोरी, अब्रह्मचर्य, परिग्रह आदि। हिंसा आदि के सर्वधा परित्याग की बात सिर्फ मुनियों के लिए है जो पूरी तरह साधना के मार्ग पर चलना चाहते हैं जिनके जीवन की अपेक्षाएं बहुत कम होती है। परिवार व समाज के बीच रहने वाला व्यक्ति पूर्णतः अहिंसक और सत्यवादी नहीं बन सकता, न पूर्ण ब्रह्मचारी व अकिञ्चन बनकर ही जी सकता है। हर व्यक्ति की अपनी अपेक्षाएं हैं, अपनी विवशताएं हैं। इन सबको ध्यान में रखकर भगवान महावीर Jain Education International For For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003142
Book TitleBat Bat me Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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