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________________ जातिवाद की अतात्त्विकता महावीर ने स्पष्ट कहा है-"तपस्या के कारण व्यक्ति विशिष्ट बनता है, जाति से नहीं। कर्म के कारण व्यक्ति ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शद्र बनता है न कि जाति से।" उन्होंने समता धर्म का संदेश दिया। सब प्राणियों को आत्मतुल्य समझने की बात कही। विश्व के छोटे से छोटे प्राणी के साथ भगवान महावीर ने प्रेम और मैत्री करने की बात बताई। और तुम मनुष्य जाति की ही एक इकाई के साथ प्रेम का भाव नहीं जोड़ सकते। महावीर के अनुयायी होकर उनकी ही शिक्षा का उल्लंघन कर रहे हो। महावीर के अलावा दूसरे धर्म के पेगम्बरों महापुरुषों ने भी प्रेम, मैत्री व समता की बात पर बल दिया है। भगवद्गीता में श्री कृष्ण ने इसी स्वर को मुखरित किया है -विद्या, विनय आदि गुणों से सम्पन्न ब्राह्मण, गाय, हाथी, कुत्ता और चण्डाल इन सब में जो समता रखता है वही वास्तव में पण्डित है। कोई भी धर्म नफरत करना नहीं सिखाता। जाति, लिंग, रंग आदि के भेदों से मानव जाति के टुकड़े नहीं किए जा सकते। इन भेदों में भी जो अभेद को देखता है वही वस्तुतः बुद्धिमान है। आनंद-क्या उनके साथ बैठने से हम भ्रष्ट नहीं हो जायेंगे ? मनोहर-अब भी तुम्हारी भ्रांति नहीं मिटी। एक कुत्ते को जो कि विष्ठा खाता है और न जाने कितने दूषित कीटाणु उसमें होते हैं उसे अपने पास में बिठाते हो, पुचकारते हो, रोटी खिलाते हो फिर भी भ्रष्ट नहीं होते और एक हरिजन के साथ बेठने में तुम भूष्ट हो जाते हो। कैसी है चिन्तन की विडंबना ! कई हरिजन तो ऐसे हैं जो तुम्हारे से भी साफ सुथरे रहते हैं। क्या हरिजन होने मात्र से वे अपराधी हो गये ? गन्दगी का काम करते हैं तब तुम उनसे दूर रहो ठीक है, पर जब साफ सुथरे हो तो बेठने मात्र से भ्रष्ट होने की बात बिल्कुल न्यायसंगत नहीं लगती। महात्मा गाँधी हरिजनों के साथ रहे हैं, उनकी परवरिश उन्होंने की। वर्तमान में युग प्रधान आचार्य श्री तुलसी हरिजनों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने की बात कर रहे हैं। उनकी धर्मसभाओं में हरिजन व्यक्तियों को भी आने का अधिकार है और जन सामान्य के साथ बिना रोक टोक के वे बैठ सकते है। महान वे ही बने हैं जिन्होंने दलितों को ऊँचा उठाया। समय का तकाजा है कि हरिजनों व दलित वर्ग के लोगों के साथ भी हम घृणा न करके भ्रातृत्व भाव का विकास करें। उनमें अगर कोई बुराई है तो उसे भी समझाकर दूर करें । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003142
Book TitleBat Bat me Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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