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________________ ईश्वर-अकर्तृत्व एक बच्चा सामान्य ज्ञान का प्रश्न पत्र हल करके स्कूल से बाहर निकला । एक प्रश्न आया था, राजस्थान की राजधानी लिखे ? उसने रास्ते में सोचा कि मैंने उत्तरपुस्तिका में भूल से दिल्ली लिख दिया है। घर पहुंचते ही वह अपने घर के मन्दिर में ध्यान लगाकर बैठ गया। पिता ने अपने पुत्र को आवाज लगायी। उस बच्चे ने कहापिताजी! अभी मैं भगवान से प्रार्थना कर रहा हूँ, बीच में नहीं उडूंगा। पिता ने कहा-यह समय प्रार्थना का नहीं है । लड़के ने सरलता से कहा-पिताजी! बात यह है कि उत्तरपुस्तिका में राजस्थान की राजधानी जयपुर के स्थान पर मैं दिल्ली लिख आया, अतः भगवान से प्रार्थना कर रहा हूँ कि वे उस त्रुटि को ठीक कर दें। पिता उसकी नादानी पर खिलखला कर हँसा और बोलामूर्ख बेटे। क्या ऐसा भी होता है ! गलती सुधारने अब भगवान थोड़े ही आयेगे। दुष्कर्म कर भगवान से उसका फल मन्द करवाने की बात ना समझ लोग ही सोचते है। भगवान अच्छे-बुरे कर्मों का न फल देते हैं और न ही परिणाम में किसी प्रकार का परिवर्तन भी करते है। अनुपम पर जो ईश्वर किसी प्रकार का फल देने में समर्थ नहीं और न किसी प्रकार का परिवर्तन भी कर सकता उस ईश्वर का भजन व स्मरण दुनिया किस लिए करेगी ? जवाहर-सुनो, फल प्राप्ति की कामना से ईश्वर का स्मरण या पूजन कभी नहीं करना चाहिए। ऐसा करना तो भगवान के साथ सौदाबानी है। ईश्वर के स्मरण का उद्देश्य है-अपनी आत्मा को पवित्र बनाना, ईश्वरीय शक्ति, ईश्वरीय आनन्द व गुणों को अपने में प्रकट करने का प्रयास करना। अनुपम-पर जैन साहब! हम को तो स्कूल में बताया जाता है कि ईश्वर की इच्छा के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता । जवाहर-ईश्वर के इच्छा होती ही नहीं है। अगर इच्छा होती है तो वह ईश्वर नहीं हम जैसा ही कोई संसारी प्राणी है। इच्छा तो मोह का प्रतिरूप है। फिर यदि ईश्वर की इच्छा से ही सब कामों का होना माना जाये तब तो चोरों की चोरी करना, वेश्याओं का व्याभिचार करना, धोखा-धड़ी करना, मिलावट व कालाबाजारी करना आदि सभी कामों का श्रेय भी ईश्वर को मिलेगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003142
Book TitleBat Bat me Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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