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________________ १०१ G इससे आगे है पांचवां गुणस्थान – देश विरति गुणस्थान । देश यानी आंशिक व्रत जिसमें पाया जाता है उसका गुणस्थान । अप्रत्याख्यानी चतुष्क का क्षयोपशम व प्रत्याख्यानी चतुष्क का उदय होने के कारण इस गुणस्थान का स्वामी अपनी क्षमता के अनुसार यथाशक्ति त्याग करता है । व्रत और अवत साथ होने के कारण इस गुणस्थान का व्यक्ति व्रताती, धर्माधर्मी, संयमासंयमी नामों से पुकारा जाता है । वतीश्रावक में यह गुणस्थान पाया जाता है । विमल - प्रत्याख्यानी कषाय चतुष्क का क्या अर्थ है ? मुनि - प्रत्याख्यानी क्रोध की बालू की रेखा से, मान की काष्ठ के स्तम्भ से, माया की चलते बेल के मूत्र की धारा से, लोभ की गाड़ी के खंजन से तुलना की जा सकती है। दूसरे शब्दों में कषाय की वह ग्रन्थि जो १५ दिन तक भी न खुले । गुणस्थान छट्ठा गुणस्थान हैहै - प्रमत्त संयत गुणस्थान | इसका अर्थ है - प्रमादी साधु का गुणस्थान । प्रत्याख्यानी कषाय चतुष्क का उपशम, क्षय या क्षयोपशम होने से व्यक्ति में व्रत को पूर्ण रूप से ग्रहण करने की क्षमता का विकास होता है । इस अवस्था में आने पर कषाय की अवस्था काफी मन्द हो जाती है । प्रमाद साथ में जुड़ा होने के कारण स्खलनाओं की सम्भावना भी बनी रहती है । सामान्यतया साधुओं में यह गुणस्थान पाया जाता है । सातवां गुणस्थान है- अप्रमत्त संयंत गुणस्थान | इसका अर्थ हैप्रमाद रहित मुनि का गुणस्थान । सतत जागरुकता के कारण इस श्रेणी में कर्मों का बंधन बहुत कम होता है । यह अवस्था छठे गुणस्थान से विशुद्धतर है । आठवां गुणस्थान है- निवृत्ति बादर गुणस्थान । स्थूल रूप से क्रोधादि कषाय जिसके क्षीण या उपशान्त हो जाते हैं उस आत्मा का गुणस्थान । इस गुणस्थान वाला व्यक्ति उपशम या क्षपक दोनों में से एक श्रेणी में आरूढ़ होकर आगे गति करता है । विमल - उपशम या क्षपक श्रेणी का क्या मतलब ? मुनि -उपशम श्रेणी का अर्थ है-मोह को दबाते हुए बढ़ना और क्षपक श्रेणी का अर्थ है - मोह को नष्ट करते हुए बढ़ना । इसको हम उदाहरण से समझ सकते हैं। ऊपर से बुझी हुई, पर राख के नीचे दबी हुई आग के समान उपशम श्रेणी है और आग के समूल नष्ट हो जाने के समान क्षपक श्रेणी है। नौवां गुणस्थान है -- अनिवृत्ति बादर गुणस्थान । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003142
Book TitleBat Bat me Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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