________________
(९४) तब इन नवीन जैनसाहित्य रूप प्राप्त हुए अगाध विलक्षण रत्नोंकी खानको देखकर देखनेवालेका चित्त आनन्दसागरमें निमग्न होगा । जो लोग जैनसाहित्यको नहीं देखते हैं उनको जैनसाहित्यके अनभिज्ञ होनेके कारण पवित्र जैनधर्म पर द्वेष होता है । देखिए एक अन्यमतावलंबी महाशय जैनसाहित्यके स्वल्पअंशके देखनेसेही जैनसाहित्यकी मुक्तकण्ठसे प्रशंसा करते हैं, ऐसेही जैनसाहित्यसम्मेलनकार्यविवरण भा. १-२-के पृष्ठ ३३ से लेकर पृष्ठ ४५ तक जैनसाहित्यके विषयमें एक अन्यधर्मावलम्बिविद्वान् महाशय भावनगरनिवासि शास्त्रि जेठालाल हरिभाईने एक प्रबन्ध लिखकर स्वानुभवसे युक्तिपूर्वक जैनसाहित्यको अतीव उच्चकोटीका साहित्य साबित कियाहै। तो इधर द्विचरनामक जैन उसी जैनसाहित्यसे मुंह मरोड़ कर कहता है कि-जैनसाहित्य ग्रन्थ जैनधर्मकी बाबत गैर समजुती करानेवाले हैं । अफसोस है इस मूर्खशिरोमणिकी लीला पर कि जिसने यह भी नहीं विचार किया कि---भारतवर्षीय तो क्या परन्तु युरोपियन विद्वानोंने भी निस जैनसाहित्यकी मुक्तकण्ठसे प्रशंसा की है उस उत्तम साहित्यको जैनधर्मकी गैरसमजुती (खोटी समझ ) का कारण मैं कहता हूं, परन्तु मेरी इस असत्य बातको कौन मानेगा; और जैन नाम रखकर ऐसे अधमकार्य करनेसे मेरेपर चारों ओरसे कैसी तिरस्कारकी वर्षा होगी । मतलब कि इस विषयका बेचरदासने कुछभी विचार नहीं किया और झट गप्प मारदी कि अपना साहित्य भागम ग्रन्थोसे भिन्नरूपमें है, अब हम
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org