________________
( ९२ )
की असत्यताको जाहिर करने वाली एक और दलील सुनिये - जब एक जाति की वस्तुओंको दो पक्षवालोंने बांटली और एक पक्षवालेने समानाकार वस्तु के बदल जानेके भयसे एक तरहका चिन्ह लगादिया, तब दूसरे पक्षवालेके पास रही हुई वस्तु उससे स्वयं पृथक् होसकती है, फिर उसको चिन्ह लगानेकी क्या जरूरत ? इससे भी श्वेताम्बर और दिगम्बरोने जुदे जुदे चिन्ह लगादिये ऐसा बेचरदासका कथन असत्य सिद्ध होता है । हां यह सत्य है कि लिङ्गाकार - शून्य कोटबंध श्वेताम्बरमूर्तियें प्राचीनकाल से चली आती थीं जब महावीरप्रभुके निर्वाणके बाद ६०९ वर्षे पीछे दिगम्बरमत निकला तब दिगम्बरियोंनें श्वेताम्बर मूर्तिओं से भेद समझाने के लिए अपनी लिङ्गाकार चक्षुः शून्य नवीन नम्रमूर्तिएं बनाली ।
बेचरदास " हवे एक अजायब भरी चीज़ म्हारे तमोने जणाववानी छे के मूल आगमो ए जैन धर्मना तत्वज्ञाननो दरिओ छे. जैनसाहित्य जे पाछलथी लखायुं छे तेमां अने मूल जैन आगमोंमां एटलो बधो फरक छे के हालना साहित्य ऊपरथी जैन धर्मनी तद्दन गेरसमजुती उभी थाय ।
""
समालोचक - खबर नहीं बेचरदासको क्या हो गया है जो जो बातें अत्युत्तम हैं वेही उसको ठीक नहीं मालूम पडती । क्या कुछ इसका भविष्य ही बिगड़ने वाला है ? जैसे मरणसमय निकट आनेपर मनुष्यको शारीरिकस्थितिको सुधारने वाली वैद्यकी
Jain Education International
F
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org