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________________ (४२) समालोचक—हां बेशक पञ्चाशकके सिवायभी अनेकग्रन्थोंमें उल्लेख आताहै. दखिये ! संबोधप्रकरणके अन्दर"पवरगुणहरिसजणयं, पहाणपुरिसेहिं जं तयाइण्णं । एगाणेगेहिं कयं, धीरा तं विंति जिणदव्वं ॥ ९५ ।। जिणपवयणवुद्धिकरं, पभावगं नाणदंसणगुणाणं । जिणधणमुविक्खमाणो, दुल्लहबोहिं कुणइ जीवो ॥१९॥ जिणपवयणवुट्टिकरं, पभावगं नाणदंसणगुणाणं । दोहंतो जिणदव्वं, दोहिचं दुग्गयं लहइ ॥ १०१॥" भावार्थ--उत्तम गुण और हर्षका जनक (पैदा करनेवाला) और प्रधानपुरुषोंका आचरण किया हुआ एक अथवा अनेक पुरुषों करके मंदिरमें एकत्रित किये हुए द्रव्यको धीरपुरुष देवद्रव्य कहतेहै ॥ ९५ ॥ जिनप्रवचनकी वृद्धि करने वाले और ज्ञान दर्शन गुणोंके प्रभावक ऐसे देवद्रव्यकी उपेक्षा करता हुवा जीव दुर्लभबोधिपनेको प्राप्त होताहै । ९९ । जिनप्रवचनकी वृद्धि करने वाले और ज्ञानदर्शनगुणोंके प्रकाशक ऐसे जिनद्रव्यसे व्याजवट्टेद्वारा लाभ स्वयं खानेवाला जीव दौर्भाग्य और दरिद्रावस्थाको प्राप्त करता है ॥ १०१॥ तटस्थ बस बस, अब बन्द कर दीजिए-श्रीहरिभद्रसूरि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003135
Book TitleDevdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
PublisherSha Sarupchand Dolatram Mansa
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Devdravya
File Size7 MB
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