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________________ ( ३५) स्फाटिकप्रासादे न्यस्ता । पत्रलिखितमुदायननृपदत्तं ग्रामाकरादिशासनं सर्व प्रमाणीकृत्य चिरमर्चिता ।। इत्यादि । ____ अर्थ-कपिलऋषिकरके प्रतिष्ठित श्रीमहावीरस्वामीकी प्रतिमा जो धूलकी वर्षादसे जमीनमें दब गईथी उसे श्री कुमारपालनृपतिके ( गुरुमहाराजसे जाननेसे ) पांशुस्थलको खुदानेसे उदायनराजाके दिये हुए शासनपत्र (फरमान ) के साथ जल्दी प्रकट हुई । उस प्रतिमाको बड़े महोत्सवसे अणहिलपुरपाटणमें लाए नवीन बनाए हुए स्फटिकके बड़े दिव्यमंदिरमें स्थापनकी और उदायनराजाके दिये हुए ग्राम आदि जो शासनपत्रमें लिखेथे वे सब कायम रखकर प्रतिमा की बहुत काल तक पूजाकी । पाठकजनो ! अब विचार करोकि भगवान महावीरप्रभुके मंदिरमें उदायनराजाने जो गाम वगैरा दिये थे उन्हें देवद्रव्य नहीं तो और क्या कहाजावे ? इसी तरह कुमारपालमहाराजने उदायनराजाके फरमान पत्रको कायम रखकर अपने राज्यमेंसे उतनेही प्रामादि दिये वे देवद्रव्य नहीं तो और क्या ? इसी तरह सिद्धराजजयसिंहने सिद्धाचल और गिरनारजीके लिये जो बारह बारह ग्राम दियेथे सो देवद्रव्य नहीं तो और क्या? तटस्थ-आपने बहुतअच्छे अच्छे प्रमाण सुनाये और उन प्रमाणोमें प्राचीनसे प्राचीनप्रमाण मुनिसुव्रतस्वामीक वक्तमें हुए १ देखो कुमारपालप्रवन्ध पृष्ट ६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003135
Book TitleDevdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
PublisherSha Sarupchand Dolatram Mansa
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Devdravya
File Size7 MB
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