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________________ ( १२६ ) प्राप्तिको समझना, और पीछेसे श्रद्धाभ्रष्ट होकर उस सामग्रीको निष्फल करदी उसका नाम दरिद्रावस्था समझें सहजसाज रही हुई श्रद्धाको पांचसौ रुपये समझना, और उसके मगजमें उत्पन्न हुआ हुआ मिध्याविचार हैं उसे शाक बेचनेवाला उग समझना, उसकी सोहबत से रही हुई श्रद्धाकोभी खोकर ' तमस्तरण ' लेखकी शक्तिरूप कोल्हे को घोड़ेके अण्डे के स्थानपर समझना, इससे मनोरथरूप घोड़ा पैदा करना था सो न हुआ, इसे कोल्हेका गिरजाना समझना, ' देवद्रव्यका भक्षण करके दुनिया संसारसागर में डूब जावे, और साधुलोगों से लोगों की प्रीति घटे, और प्रभावक पूर्वाचार्यों से जनसमाजका मन फिर जाय, इत्यादि विषयके सिद्ध करने के लिये भाषण देकर ' मेरे भाषणका जनसमूहमें कुछ असर होगा ' ऐसी जो उसकी आशा है उसे खरगोशके पीछे भागना समझना, आस्तिकजनों की तरफ से उसके असत्य भाषणका समाधान करना उसे सत्यवादिओंका उपदेश समझना, अगर सत्यवादियोंके किये हुए समाधान से समझकर श्रीसङ्घसे माफी मांगले तो बेचरदास इस रूपकसे इस विषयमें भिन्न होजाय, और इस विषय में भिन्न होजाय तोभी जैसे उस आदमीको भटक २ कर मरना पड़ा ऐसा उसके लिये नहीं बन सके । अगर इतने शास्त्रीयप्रमाण देनेपर भी बेचरदास अपने दुराग्रहसे नहीं हटेगा तो उस आदमसिभी अनन्तगुण विशेष दुःखका भागी होजायगा । क्योंकि वह दुर्भागी तो एक जन्मके लिये भटक भटक कर मरा परन्तु बेचरदास के लियेतो अनन्तजन्मों में भटक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003135
Book TitleDevdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
PublisherSha Sarupchand Dolatram Mansa
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Devdravya
File Size7 MB
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