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हो, उसकी बातको सुनकर वह शाकबेचनेवाला समझ गया कि यह कोई बेवकूफ आदमीहै इसको अच्छी तरहसे ठगें, ऐसा विचार करके बहुत मीठे शब्दोंपे उस दुर्भाग्यके साथ बात चीत करनी शुरू की। वह दुर्भागी उसे अपना मित्र समझने लगा. थोडीसी बात चित चलनेके बाद उस अमागीने उससे प्रश्न किया कि इस टोकरीमें क्या है ? उसने कहा ये घोड़ेके अण्डे हैं। जब उस मूर्खने कीमत पूछी तब उस धूर्तने सातसौ रूपयेकी कीमत बतलाई । वह विदेशी चौंककर पूछता है कि हे इतनी कीमत क्यों ? शाक वालने उत्तर दिया कि इस अण्डेमेंसे घोडा निकलेगा तब वह एक हज़ार रूपयोंका होगा और दोचार महिने इसको माल मसाला खिलानेमें आवेगा तो चौदह सौकी कीमतका भी हो जाएगा। इस बातको सुनकर उस विदेशीका मन उसे खरीदनेका हुआ परन्तु उसके पास रुपये मात्र पांचसौ ही थे। इस लिये चित्त धबराता था । अन्तमें बड़ी अधीरतासे उसने कहाकि मेरा दिल इस चीजको ले जानेका है परन्तु क्या करूं? मेरे पास पांचसौ रूपये ही हैं उस साक वालेने कहा कि आप हमारे मित्र बनगए हो तो आपका भला करना हमारा फरज है. इस लिये और से सात सौ रूपये लेताहूं परन्तु अब आपसे पांच सौ ही लूंगा। इस बातके सुननेसे उस दुर्भागीकी खुशीका पार ही न रहा और झट पांच सौ रूपये देकर उस कोल्हेको घोड़ेका अण्डा समझ कर खरीद लिया। तब उस धूर्त शाकवालेने कहा कि देखना! इसको
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