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________________ ( ११८ ) अनुक्रमसे प्रकट होता, परन्तु ऐसा शास्त्रमें कहीं उल्लेख नहीं है, बतलाई अब उन्मत्त बेचरदास के बकवादको सत्य माने या सत्यशास्त्रनिरूपिता वीधवादको ? कहना ही पड़ेगा सत्यशास्त्र निरूपित विधिवाद कोही बेचरदास ! तुमको इस विषयका तो तुम ऐसा कभी नहीं लिखते कि जो दान देसके वही शील पाल सके वही तप कर सके इत्यादि, क्योंकि तुमने यह उत्सूत्र प्ररूपणा की है अगर नहीं तो फिर बतलाईये, यह विरुद्धतर्क किस आगमशास्त्रमेंसे ढूंढ निकाली है ? सिवाय गप्पपुराणके और कहीं से भी यह निराली दलील नहीं निकल सकती, जिसको दानांतराय के उदयकी तीव्रता हो वह दान नहीं देसकता हैं किन्तु वर्षान्तरायके क्षयोपशम और क्षुत्रावेदनीय की मंदता से तपश्चर्या खुशीसे कर सकता है | और पुरुषवेदनीय नामकी मोहप्रकृतीके क्षयोपशमसे शील तो पाल सकता है, परन्तु दानान्तराय और वीर्यान्तरायके तीब्रोदयसे दान देना और तप करना नहीं बन सकता । कितनेक लोग प्रथमके तीन ( दानशील तपः ) के बगेरे ही भावना भा सकते हैं जैसे श्रीबलभद्रमुनिमहाराजकी बनमें सेवा करने वाला हिरण दान शील और तपोगुण के वगैर ही भावना भाकर पञ्चमदेवलोकको प्राप्त हुआ । क्योंकि अध्यवसायकी विशुद्धि पर भावनाका दारोमदार (आधार) है । मतलब यह है कि - बेचरदासको जैनकर्म्मसिद्धांत का ज्ञान न होनेसे भैंसका स्वरूप भैंसे ( पाड़े) में समझ कर दूध की आशापूर्त्तिके लिये Jain Education International Ø་” सत्य मानना चाहिये । लेशमात्र भी ज्ञान होता For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003135
Book TitleDevdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
PublisherSha Sarupchand Dolatram Mansa
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Devdravya
File Size7 MB
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