________________
(१०४ ) उन्होंने ऐसे उत्कट आचारके वर्णन करनेवाले अन्य क्यों बनाए ? इस दलीलसेभी वेचरदासकी कपोलकल्पनारूप ढोलकी पोल जाहिर हो जाती है।
तटस्थ-भला यह क्या बात है, जब साधुलोग श्रावकको सूत्र सुना सकते हैं तो श्रावक स्वयं उन सूत्रों को क्यों न पढ़ सके ?
समालोचक-भला यह क्या सवाल किया, यहतो एक छोटा बच्चाभी समझ सकता हैकि-जैसे पक्षीके छोटे बच्चको उसकी माता चुगा लाकरके खिलाती है उसवक्त वह बच्चा अपनी माताकी अपेक्षाको छोड़कर स्वयं चुगा करनेके लिये घोंसले (मारे )से नीचे गिरेतो पांखोंके अभावसे इसकी मौतही आई समझनी अब इस दृष्टान्तसे श्रावक वगैर योग्यताके ( जब साधुमेंभी अमुक अमुक वर्षों की बाद अमुक अमुक सूत्र पढ़नकी योग्यता आती है तो फिर गृहस्थोंमेंतो सत्र पढ़नेकी योग्यताकी बातही कहां रही) अगर गीतार्थगुरुमुखसे सूत्र सूने तो माँके मुंह से लिये हुए चुगेकी तरह सुन सकता है परन्तु स्वयं सूत्र पढ़नेका इरादातो ऐसा हैकि जैसे बच्चेका स्वयं चुगा खानेको जाना, बल्कि उससेभी अनन्त गुण ज्यादह दुःखप्रद है। क्योंकि स्वतन्त्रताम पसंद रहनेवाले पक्षीकी तो एकवारही मौत होती है परन्तु प्रभुआज्ञासे विरुद्ध होकर स्वतन्त्र सूत्र पढ़नेवाले गृहस्थकोतो अनन्तबार मरना पड़ता है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
___www.jainelibrary.org