SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कब तक करते रहेंगे । देखा तो रातभर उन लोगोंने जीतोड़ परिश्रम केया, जब प्रातःकाल हुआ और घर में प्रकाश आया तो बारह घंटेके अटूट श्रमसे थक कर सोगये । दिनका आधा भाग सोनेमें व्यतीत करदिया, बादमें उठकर अपने अपने काममें लग गये । पीछे सुमतिने अपनी साससे कहा क्योंजी रातको यह सब आदमी क्या कररहें थे ? । सासने उत्तर दिया कि तूं बड़ी मूर्खा है इतना भी नहीं जानती कि सारे घरमें अंधेरा फैल रहाथा उसको टोकरियोंमें भर भरकर बाहर निकाल रहे थे। लो ढोओ, लो ढोओ, करते करते दम खुश्क हो गया तब बारह घंटेके बाद अंधेरा निकाल देनेसे उजाला हुआ और सोगये। यह एक प्रसिद्ध बात है सो भी तूं नहीं समझ सकी ? सुमति फ़िर पूछने लगी कि क्योंजी यह रिवाज अपने ही यहां है या दूसरे घरोंमें भी है ? सासने उत्तर दिया कि दूसरे घरोंमें क्या सारे शहरमें है । सुमति विचार करने लगी कि इन मूल्को समझानेके लिए प्रथम इनके अनुकूल होना पड़ेगा ऐसा निश्चय करके बोली कि सासुजी ! मैं तो योंही हसती हूं क्या हमारे यहां अंधेरा नहीं होता और क्या वह नहीं निकाला जाता ? अवश्य होता है और निकाला भी जाता है । मैं खुद मेरे इतने बड़े घरसे अकेली ही सब अंधेरेको बाहर निकालतीथी इस लिए जब सब आदमी घरपर आवें तब उनको कह देना कि आज सब सोजाओ अपनी वहु अकेली ही सारे धरका अंधेरा दूर करदेगी । सास बड़े आश्चर्यमें मग्न होकर विचार करने लगीकि जिस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003135
Book TitleDevdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
PublisherSha Sarupchand Dolatram Mansa
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Devdravya
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy