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प्रस्तुति
विचार का तात्पर्य है गतिशीलता। जो गतिशील होता है, वह सब विचार नहीं होता किन्तु विचार अवश्य गतिशील होता है। गतिशीलता परिवर्तन का संकेत-सूत्र है। एकांगी दृष्टिकोण वाला व्यक्ति विचार को भी बांधकर रखना चाहता है, इसीलिए विचार बहुत बार वंदनीय से अवंदनीय बन जाता है।
विचार भाव और मन की साझा सरकार है। विचार को बदलने का अर्थ होता है भाव को बदलना। नकारात्मक भाव नकारात्मक विचार को जन्म देता है और सकारात्मक भाव सकारात्मक विचार को। इसलिए विचार के मूल स्रोत पर ध्यान देना अधिक आवश्यक है। बहुत लोग मन से परे जाने की बात नहीं सोचते, फलतः उलझनें बढ़ जाती हैं। सुलझने का मार्ग है मन की भूमिका का अतिक्रमण कर चेतना के निकट पहुंच जाना।
सकारात्मक भाव, सकारात्मक विचार और सकारात्मक जीवनशैली में गहरा संबंध है। प्रशस्त जीवनशैली प्रशस्त भाव को जन्म देती है और प्रशस्त भाव प्रशस्त विचार को जन्म देता है। इसलिए इस त्रिपदी के सामंजस्यपूर्ण समन्वय पर दृष्टिपात करना बदलने की प्रक्रिया का पहला चरण है।
हम जो हैं, वही न रहें, आगे बढ़ें। हम जो सोचते हैं, उसे सीमा न मानें, तट के पार जाना भी सीखें। बदलने का सूत्र अपने आप हाथ लग जायेगा। । प्रस्तुत पुस्तक के सम्पादन में मुनि धनंजय कुमार ने निष्ठापूर्ण श्रम किया है।
-आचार्य महाप्रज्ञ
जैन विश्व भारती १ जनवरी, १९६६
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