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मनुष्य मनस्वी प्राणी है। उसके पास मन है और विकसित मन है । पशु के पास भी मन है, पर उतना विकसित नहीं है जितना मनुष्य का है। मनुष्य जितना गूढ़ चिंतन कर सकता है, उतना पशु कभी नहीं कर सकता । आज तक के इतिहास में एक भी पुस्तक ऐसी नहीं है, जो किसी पशु के चिंतन से प्रसूत हुई हो । विचार के क्षेत्र में एक भी उसकी देन नहीं है, जिसका मूल्य आंका जा सके।
विचार सूचक है आंतरिक व्यक्तित्व का और बाहरी प्रभावों का । विचार एक दूत है । उसका कार्य है भीतर के संदेश को बाहर पहुंचा देना । जैसा विचार वैसा आन्तरिक व्यक्तित्व । जैसा आन्तरिक व्यक्तित्व वैसा विचार । विचार मूल नहीं है, मूल है भाव । विचार की पवित्रता का सूत्र है भाव-परिवर्तन । जैसे-जैसे भाव विशुद्धि घटित होगी, भाव पवित्र होते चले जाएंगे । जिसने भाव को बदलने का मंत्र सीख लिया, उसने विचारों को बदलना सीख लिया। आचार, विचार और व्यवहार की विशुद्धि से ही चेतना का ऊर्ध्वारोहण संभव बन सकता है । 'विचार को बदलना सीखें' में इस सचाई को समझने का ही नहीं, जीने का पथ भी प्रस्तुत है ।
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