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कैसे करें संस्कारों का निर्माण ?
व्यक्ति में अच्छाई और बुराई दोनों के बीज विद्यमान होते हैं। ऐसा कोई व्यक्ति नहीं होता, जिसमें केवल अच्छाइयां ही अच्छाइयां हों और ऐसा भी कोई व्यक्ति नहीं होता, जिसमें बुराइयां ही बुराइयां हों। दोनों प्रकार के बीज विद्यमान रहते हैं। यह कहा जाता है-छोटा बच्चा जन्म लेता है। वह खाली पाटी या सादा स्लेट होता है, किन्तु यह गलत बात है। खाली कोई नहीं होता। हर व्यक्ति भरा हुआ होता है। एक छोटे बच्चे के भीतर भी इतना छिपा होता है, इतना भरा होता है, जितना कि एक बड़े में। अन्तर सिर्फ यही है कि बड़े में वे सब बातें अभिव्यक्ति हो जाती हैं। उसके भीतर जो कुछ भरा पड़ा है, वह वाणी के द्वारा, कर्म के द्वारा सामने आ जाता है, छोटे में वे अभिव्यक्त नहीं होती, छिपी रहती हैं। अन्तर केवल व्यक्त और अव्यक्त का है। होने और न होने का कोई अन्तर नहीं है।
दोहरा दायित्व प्रश्न है-प्रकट क्या हो ? सामने क्या आये ? जीवन का अच्छा पक्ष, शुक्लपक्ष प्रकट हो या जीवन का बुरा पक्ष, अंधेरे का पक्ष प्रकट हो, यह हमारे पुरुषार्थ पर निर्भर है। यह निर्माता पर भी निर्भर है कि हम किस पक्ष को उभारें, जिससे संतान अच्छी बन सके। किस पक्ष को दबाएं, जिससे बुराइयां उभर कर ऊपर न आ सकें और वे धीरे-धीरे शान्त या क्षीण हो जाएं, यह है हमारा करणीय कार्य। बच्चा क्या लेकर आया है, इस पर हमारा कोई वश नहीं है। करना इतना ही है कि उसमें जो अच्छाई के बीज विद्यमान हैं, उन्हें उभार कर ऊपर ला सकें। इसमें महिलाओं का दोहरा दायित्व है। पुरुषों का इकहरा दायित्व है। पुरुष का काम है अपने संस्कारों का निर्माण करना। महिला का काम है-अपने संस्कारों का निर्माण करे
कैसे करें संस्कारों का निर्माण ? / १६६
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