________________
नहीं लाया । मैं क्या करता ? आज के व्यापारी इतने लोभी बन गए हैं कि दो-चार आने की रस्सी का दो रुपया मांगते हैं । ऐसी लूट मची है, मैं रस्सी कैसे लाता ?
सामाजिक जीवन की सचाई
दूसरे के भरोसे कभी काम नहीं चलता । अपना भरोसा ही काम देता है । कितना भी निकट का सहयोगी हो, काम तभी आयेगा, जब खुद का भरोसा है । सबसे बड़ी बात है स्वयं में आत्मविश्वास पैदा करना । सामाजिक जीवन की एक बड़ी कठिनाई यह है - मापदण्ड सारा दूसरों पर आधारित है। चाहे विवाह का प्रसंग हो या पार्टी का, कपड़े पहने जाएंगे तो दूसरों की पसंद के । यह देखा जाता है- लोग कौन-सी डिजाइन को पसंद करते हैं । अपनी पसंद-नापसंद का कोई प्रश्न नहीं, बस दूसरों को अच्छा लगना चाहिए। दूसरा कहे, अच्छा है तो अच्छा है। दूसरा कहे - खराब है तो स्वयं की दृष्टि में अच्छा होते हुए भी वह खराब है। मैंने बहुत सारे लोगों से पूछा- 'भाई ! तुम इतना आडम्बर क्यों करते हो ? आज इन बातों का कोई महत्त्व नहीं है, फिर भी तुम ऐसा क्यों करते हो ? वे कहते हैं - 'महाराज ! हम भी जानते हैं कि यह अच्छी बात नहीं है, ऐसा करना ठीक नहीं है पर करें क्या ? अगर हम ऐसा नहीं करेंगे तो दूसरे लोग टिकने नहीं देंगे, सिर उठा कर चलने नहीं देंगे ।'
कठपुतली न बनें
इसका मतलब यह है - आदमी दूसरों के हाथ की ऐसी कठपुतली है, जिसे वे चाहें जैसा नचाएं। ऐसा खिलौना है, जिसे चाहें जैसा चलाएं। दूसरों के हाथ की कठपुतली बनना, खिलौना बनना, अपने भाग्य के साथ खिलवाड़ करना है । ऐसा वही आदमी करता है, जिसे अपने आप पर भरोसा नहीं है । जो आत्मविश्वासी होगा, वह यह नहीं सोचेगा कि दूसरे क्या कहेंगे । उसे जो करना है, वह करेगा। पहले चिंतन करें, विचार करें, हिताहित सोचें, निर्णय लेने में पूरी सावधानी बरतें, किन्तु चिंतनपूर्वक जो करने का निश्चय कर लिया, उसे बस करना है, फिर रुकना नहीं है। दूसरे क्या कहेंगे, यह बात ही गौण कर देनी चाहिए ।
१६० / विचार को बदलना सीखें
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org