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(३)-सूकर मद्दव के भोजन से बुद्ध का तात्कालिक स्वास्थ्य विगड़ने और मारणान्तिक कष्ट होने का मूल कारण सूकर महव नहीं पर कुछ महिनों पहले भुगती हुई बिमारी से उत्पन्न आँतों की दुबैलता था। __ अंतिम चातुर्मास्य में बुद्ध को एक भयङ्कर बिमारी हुई थी। वह बिमारी क्या थी इसका कहीं स्पष्टीकरण नहीं मिला, फिर भी यह विमारी थी बड़ी भयङ्कर, बुद्ध इस बिमारी से मानसिक शक्ति का अवलम्बन लेकर ही बचे थे । चातुर्मास्य की समाप्ति तक वे रोग मुक्त हो गये थे, परन्तु भयङ्कर विमारी मनुष्य के शरीर में कुछ न कुछ अपना प्रभाव छोड़कर ही जाती है। हमारी राय में बुद्ध का यह रोग रक्तातिसार अथवा संग्रहणी इन दो में से कोई एक होना चाहिए, क्यों कि यही दो रोग जाठर शक्ति को अधिकसे अधिक हानि पहुचाते हैं । बुद्ध निरोग होकर पाद विहार करने लगे थे, उनका शरीर जराजीर्ण हो गया था और जठर भी पहले जैसा नहीं रहा था, फिर भी उन्होंने पूर्वाभ्यास से अपनी पाचन शक्ति को ठीक समझा और सूकर महब जैसा गरिष्ठ भोजन कर के वे तत्काल रोगाक्रान्त हो गये। ___ संग्रहणी रोग से मुक्त हुए मनुष्यों को कालान्तर में पेट भर दुर्जर पक्कान्न खाने से बिमार हो कर दो चार ही दिन में मरजाने के अनेक दृष्टान्त हमारे सामने हैं, परन्तु विस्तार के भय से यहाँ उनकी चर्चा नहीं कर सकते । बुद्ध ने स्वयं सूकर का मांस किसी समय खाया था, बुद्ध के भिनु भी वैसा मांस खाते थे, परन्तु न
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