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(४६४ ) कोई कहते हैं- सूकर महब का अर्थ सूअर मांस नहीं पर सूअरों द्वारा कुचला हुआ वाँस का अंकुर ऐसा होता है ।
दूसरे कहते हैं-सूअरों द्वारा मर्दित भूमि भाग में उत्पन्न हुआ अहिच्छन्त्रक सूकर महव है ।
उपयुक्त पाँच मतों में से केवल बुद्धघोषाचार्य का मत ही सूकर मदत्र-सूअर मांस ऐसा अर्थ मानता है शेष सभी सूकर मद्दव को अन्यान्य पदार्थ होने का अपना अभिप्राय व्यक्त करते हैं । हमारो राय में इन पाँच मतों से एक भी मत ग्राह्य प्रतीत नहीं होता।
बुद्ध घोषाचार्य ने सूकर मद्दव का सूकर मांस अर्थ किया, इसका एक ही कारण हो सकता है, वह यह कि उग्गगहपति द्वारा बुद्ध को सूअर का मांस दिये जाने का "अंगुत्तर निकाय" के पञ्चक निपात में उल्लेख मिलता है, परन्तु टीकाकार आचार्य ने बुद्ध की अवस्था और थोड़े समय पहले भुगती हुई बिमारी का विचार नहीं किया। बुद्ध तो क्या दूसरा भी समझदार मनुष्य अस्सी वर्ष की उम्र में पहुँच कर रोगशय्या से उठ चलता फिरता बन कर सूअर का मांस खाने की कभी इच्छा नहीं करेगा जो सूकरमद्दव का अर्थ गोरस से पकाया हुआ ओदन का मृदु भोजन बताते हैं यह विचार युक्तिसङ्गत हो सकता है। परन्तु चुन्द ने जब बुद्ध को भोजन का आमंत्रण दिया। उस समय धुद्ध या उनके शिष्यों द्वारा यह सूचना मिलने का कोई प्रमाण नहीं मिलता कि भगवान् बुद्ध की शारीरिक प्रकृति
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