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( ४७२ ) अर्थ-सर्व जीवों पर दया रखने वाले तथागत बुद्ध का परियाय वचन देखो, जिनने हो धर्म प्रकाशित किये हैं।
पाप को देखो और उससे विरक्त हो, यदि तुम पाप से विरक्तचित्त हो जाओगे तो सर्वदुःखों का नाश कर दोगे।
यतं चरे यतं चिट्ठ, यतं अच्छे यतं सये। यतं सम्मिञ्जये भिक्खू, यत मेनं पसारये ॥
(इतिवृत्तक पृ० १०१) अर्थ-भिक्षु यतना से खडा रहे, यतना से बैठे, यतना से सोये, यतना से संकुचित करे, और यतना से फैलाये ।
सुख कामानि भृतानि, यो दण्डेन विहिंसति । अत्तनो सुखमेसानो पेच सो न लभते सुखं । सुख कामानि भूतानि, यो दण्डेन न विहिंसति । असनो सुखमेसानो, पेच सो लभते सुखन्ति ॥
(उदान पृ० १२) अर्थ-सर्व प्राणी सुख को चाहने वाले हैं, इनका जो दण्ड (मानसिक, वाचिक, कायिक प्रहार ) से घात करता है, वह अगले जन्म में इष्ट सुख को नहीं पाता ।
सर्व प्राणी सुख के चाहने वाले हैं, इनका जो दण्ड से घात नहीं करता है, वह सुख का अभिलाषी मनुष्य अगले जन्म में सुख को प्राप्त करता है।
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