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ब्राह्मण भी इस विषय में बुद्ध से चर्चा करके निरूत्तर होते और उनके अनुयायी बन जाते थे, तो शूद्र तथा इतर हल्की जाति के मनुष्यों का तो कहना ही क्या ?
स्त्री प्रव्रज्या प्रारम्भ में बुद्ध ने स्त्रियों को प्रव्रज्या नहीं दी थी, परन्तु उनके शिष्य श्रानन्द के अनुरोध से उन्होंने स्त्रियों को प्रव्रज्या देना स्वीकार किया, परन्तु यह स्वीकार प्रजित होने वाली स्त्रियों में मुख्या महाप्रजापति गौतमी के आठ नियम मान लेने के बाद किया गया था। वे नियम ये थे
१-भिक्षुणी संघ में चाहे जितने वर्षों तक रही हो तो भी उसे चाहिए कि वह छोटे बड़े सभी भिक्षुओं को प्रणाम करे । .. २- जिस गाँव में भिक्षु न हो वहाँ भिक्षुणी न रहे ।
३-हर पखवारे में उपोसथ किस दिन है, और धर्मोपदेश सुनने के लिये कब आना है, ए दो बातें भिक्षुणी भिक्षु संघ से पूछ ले।
४-चातुर्मास्य के बाद भिक्षुणी को भिक्षु-संघ और भिक्षुणी. संघ की प्रवारणा करनी चाहिए ।
५-जिस भिक्षुणी से संघादि शेष आपत्ति हुई हो उसे दोनों संघों में पन्द्रह दिनों का मानत्त' लेना चाहिए ।
टिप्पणी-१ संघ के सन्तोष के लिये विहार से बाहर रातें बिताना।
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