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वह वर्षाचातुर्मास्य बनारस के निकट बिता कर फिर वे राज गृह की तरफ चले गये। वहां के राजा बिम्बसार ने उनके तथा उनके भिक्षुओं के निवास के लिये "वेणुवन" नामक एक उद्यान समर्पण कर दिया। वे वहां रहते हुए अपने धर्म का प्रचार करते थे । वहां के रहने वाले प्रसिद्ध संन्यासी उरुवेल काश्यप, नदी काश्यप, और गया काश्यप, बुद्ध के समागम में आये और उनके शिष्य बन गये । उक्त तीनों काश्यप वहां के विद्वान् और प्रतिष्ठित संन्यासी थे । उनके बुद्ध का शिष्यत्व स्वीकार करने का राजगृह निवासियों पर बड़ा प्रभाव पडा । लोग उनके पास जा जाकर उनका नया धर्म सुनते और कई उनके अनुयायी बन जाते । राजा बिम्बसार भी गौतम का अनुयायी बन चुका था, परन्तु बुद्ध अपने धर्म का सर्वत्र प्रचार करने को बड़े उत्कण्ठित थे । प्रथम उन्होंने अपने विद्वान् भिक्षुओं को उपदेशक के रूप में चारों दिशाओं में भेजा । परन्तु बाद में उन्हें ज्ञात हुआ कि इस पद्धति से भिक्षुओं को बड़ा कष्ट होता है अतः संघ के रूप में एक साथ फिरना ही योग्य है । वे अपने सभी भिक्षुओं को साथ में लिये भारत के सभी आर्य देशों में घूमते-पूर्व में अङ्ग, पश्चिम में कुरुक्षेत्र, उत्तर में हिमालय और दक्षिण में विन्ध्याचल की उत्तरी सीमा । बुद्ध के समय में यही मध्य प्रदेश आर्यभूमि माना जाता था । बुद्ध अपने भिक्षु संघ के साथ इस आर्यक्षेत्र के भीतर घूमा करते और अपने भिक्षु समुदाय को बढ़ाते जाते थे, इनके गृहस्थ उपासक इनके
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