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संन्यासी का पादविहार संन्यासी को पैदल विहार करना चाहिए। इसके विपरीत यान वाहन द्वारा भ्रमण करने से प्रायश्चित्त बनना पडता है । इस विषय में वायु पुराण में लिखा है
सामर्थ्य शिविकामश्वं, गजं वृषभमेव च । शकटं वा रथं वाऽपि, समारूह्य च कामतः ।। व्रतं सान्तपनं कुर्यात्, प्राणायामशतान्वितम्। असामर्थे समारूह्य, यानं पूर्वोदितं पुनः।। कृच्छकं शोधनं तत्र, प्राणायामास्त्वकामतः । अर्थ---शक्तिमान होते हुए भी पालकी, घोडा, हाथी, बैल, गाडी, और रथ इन पर इच्छा से चढ कर चले तो सौ प्राणायाम सहित सान्तपन व्रत करे, और अशक्त होने के कारण पूर्वोक्त यान वाहनादि पर इच्छा पूर्वक चढ़े तो एक कृच्छ व्रत से प्रायश्चित्त करे और बिना इच्छा के अशक्ति के कारण चढ़ना पड़ा हो तो सौ प्राणायाम द्वारा शुद्धि करे।
संन्यासियों के पतन के कारण बहवृच परिशिष्ट में संन्यासी के पतन का कारण निम्नलिखित प्रकार से दिया गया है--
दिवा स्वप्नं च यानं च, स्त्रीकथा लौल्यमेव च । मश्चकः शुक्लवासश्च, यतीनां पतनानि षट ॥ .
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