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( ३४० ) ब्रह्मचारी छाता, जूता, सुगन्धि पदार्थ, पुष्प-माला आदि का त्याग करे और नाच, गान, आलाप आदि के जलसों में न जाय और मैथुन का त्याग करे।
व्रतस्थित इन्द्रियों का संयम रखने वाला ब्रह्मचारी हाथी घोडों पर न चढ़े, और सन्ध्योपासना अवश्य करे । ब्रह्मचारी के नियमों के विषय में संवर्त स्मृतिकार कहते हैं । उपनीतो द्विजो नित्यं, गुरवे हितमाचरेत् । स्रग्गन्ध-मधुमांसानि, ब्रह्मचारी विवर्जयेत् ॥ ब्रह्मचारी तु योऽश्नीया-न्मधुमांसं कथञ्चन । प्राजापत्यं तु कृत्वाऽसौ, मौजीहोमेन शुद्धयति ।।
अर्थः-उपनयन प्राप्त ब्राह्मण नित्य गुरु के हित में प्रवृति करे और जब तक ब्रह्मचर्याश्रम में रहे तब तक पुष्पमाला, सुगन्धि तैल आदि तथा मधु मांस का त्याग करे।
जो ब्रह्मचारी किसी भी प्रकार से मधु मांस का भक्षण करे तो वह प्राजापत्य का प्रायश्चित कर मौञ्जी होम करने से शुद्ध होता है वसिष्ठ धर्म शास्त्र में ब्रह्मचारी के भोजन करने का समय
"चतुर्थ षष्ठाष्टम काल भोजी" ॥८॥ अर्थ-ब्रह्मचारी दिवस के चतुर्थ, षष्ठ, अष्टमांश में भोजन करने वाला होता है।
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