________________
( ३१४ ) इस तप के नाम के अन्त में प्रयुक्त उत्तर शब्द उपरि तन संख्या का सूचक है। पूर्वोक्त तप एक एक उपवास से शुरू होते हैं, तब भद्रोत्तर की प्रथम पंक्ति पाँच उपवास से शुरू होकर नव पर समाप्त होती है । इस प्रकार संलग्न अधिक उपवास होने के कारण यह भद्रोत्तर तप कहलाया। बाकी भावना तथा दृष्टिस्थिरता इसमें भी उक्त दो तपों की ही तरह करनी होती है।
उक्त भद्र तप प्रायः उत्कट शारीरिक बल वाले श्रमण ही पूर्व काल में किया करते थे । वर्तमान समय में ऐसे तप करने की शक्ति तथा संहनन नहीं रहे ।
१-लघुसर्वतोभद्र तपो यन्त्रक
-
उप दिन १० मास, पा० दिन ३ मास, १० दिन
-
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org