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( २६३ ). ५-वह वृष्टिकाल के मध्य अपने आश्रय स्थान से बाहर नहीं निकलता।
६-वह स्नान नहीं करता।
. श्रमण अग्नि को कभी नहीं जलाता, न जलती हुई आग का शीत काल में भी सेवन करता है।
--श्रमण अपने आश्रय स्थान पर दीपक न रखता, न रखवाता है।
६. श्रमण कितनी भी गर्मी क्यों न हो वस्त्र से तथा पंखा से हवा नहीं लेता।
१८. वह रात्रि के समय खुले मैदान में नहीं बैठता और न सोता है।
११. श्रमण हरी वनस्पति को नहीं छूता है। १२. वह कच्च नाज नहीं खाता न स्पर्श ही करता है।
१३. श्रमण अपने लिये बनाये गये भोजन पानी को स्वीकार नहीं करता, न स्वयं कुछ पकाता पकवाता है।
१४. वह प्याज, मूली, लहसुन. सक्कर कन्द, आदि तमाम कन्द मूलों को प्रासुक होने पर भी भिक्षा में नहीं लेता।
१५. श्रमण भोजन पानी दवाई आदि खाद्य पेय पदार्थ को अपने पास बासी नहीं रखता है ।।
१६. वह मांस तथा किसी भी नशीली चीज का सेवन नहीं करता है।
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