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________________ ( २५२ ) सत्ताईस श्रमणगुण सत्तावीसं अणगार गुणा पन्नत्ता, तं जहाः पाणाई वायाओ वैरमणं १ । मुसा वायाओ वेरमणं २ । अदिना दाणाश्रो वेरमणं ३ । मेहुणाओ वेरमणं ४ । परिहाओ बेरमणं ५। सोइंदिय निग्गहे ६। चकिखंदिय निग्गहे ७ । धाणि दिय निम्गहे ८ । जिभिदिय निग्गहे हैं । फासिदिय निग्गहे १० । कोह विवेगे ११ । माण विवेगे १२ । माया विवेगे १३ । लोभ विवेगे १४ । भाव सच्चे १५ । करण सच्चे १६ । जोग सच्चे १७॥ खमा १८ । विरागया १६ । मण समाहरणया २० । वय समाहरणया २१ । काय समाहरणया २२ । णाण संपएणया २३ । दसण संपण्ण्या २४ । चरित्त संपण्णया २५ । वेयण अहिया सणया २६ । मारणंतिय अहिया सणया २७ । “समवायाङ्ग सूत्र" पृ ११७ अर्थः-सत्ताईस गृहत्यागी साधु के गुण कहें हैं। वे इस प्रकार हैं: जीवों के प्राण लेने से दूर रहना । झूठ बोलने से दूर रहना। अदत्तादान ( न दिये हुये अन्य स्वामिक पदार्थ को लेने से दूर रहना ) मैथुन भाव (विषयासक्ति ) से दूर रहना । परिग्रह ( संयम के उपकरणों के अतिरिक्त अन्य पदार्थों का संग्रह करने) से दूर रहना । श्रोत्रेन्द्रिय निग्रह (कर्णेन्द्रिय के विषयों का जीतना) चक्षु रिन्द्रिय निग्रह ( आंखों के विषयों का जीतना । घ्राणेन्द्रिय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003119
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1961
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Food
File Size19 MB
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